जनजागृती पक्ष दैनिक समाचार-पत्र के स्थाई स्तम्भ में प्रकाशित व्यंग्य लेख
Thursday 18 June 2009
नारी बिल पर आरी
नारी बिल पर आरी
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एक जमाना था कि महिलाऐ चार दीवारी में कैद हो कर रह जाती थी । हालाँकि हमारे देश में नारियां सदैव से ही पूजनीय रही है। आप कहेंगे कि पूजनीय तो हमारे सभी देवी-देवता हैं लेकिन हम हमेशा उन्हें मन्दिर की चार दीवारी में ही कैद करके रखते हैं।आपकी बात भी सही है ,नारी भी तो देवी का दर्जा प्राप्त है .....?फिर भी पुरुष के आगे नारी की एक नहीं चलती है। और भला चले भी क्यों......चल गई तो हम पुरुष क्या भाड़ झोकेगें ..?
लेकिन आज उसी पुरुष प्रधानता पर ग्रहण लगने का खतरा देख कुछ लोगों का पेट दुखने लगा है। तभी तो संसद में महिला आरक्षण बिल आज तक पास नहीं हो सका। जब भी कोई कोशिश हुई तो तुरन्त ही कोई भी दल या नेता टांग अडाने के लिऐ तैयार ही मिल जाता है और महिला आरक्षण हर बार खट्टे अंगूर की तरह बन कर ही रह जाता है।
अब तो हमारे देश की प्रथम नागरिक महिला,लोकसभा की अध्यक्ष महिला, इसके साथ ही अप्रत्यक्ष रूप से सरकार की नकेल भी एक महिला के हाथों में है जो पर्दे के पीछे से ही सही आखिर सरकार में सबसे मजबूत हस्ति है। ऐसे में पुरुषों को महिला आरक्षण का सपना देख कर ही भरी गरमी में भी पसीने छूटने लगते हैं । तभी तो महिला आरक्षण बिल का नाम आते ही शरद यादव ने सुकरात की तरह जहर पीने तक धमकी दे डाली ।
उन्होंने सोच था कि पुरुषों की जमात उनके सुर में सुर मिलाते हुऐ उनके पीछे आ खडी होगी लेकिन जब उन्होंने पीछे मुडकर देखा तो मैदान ही खाली पडा था । कोई भी उनके शहीदी कार्यक्रम में शामिल होने के लिऐ तैयार ही नहीं हुआ। आखिर सभी को दोबारा भी महिलाओं से वोट लेने हैं।अब बेचारे यादव साहब भी क्या करते शुद्ध नेता की तरह फौरन ही बयान से पलट गये कि मेरा मतलब यह नहीं वह था....... महिलाओं को ऐसे नहीं वैसे आरक्षण देना चाहिऐ.......?आखिर नेता जो ठहरे वैसे भी आजकल सभी जानते है कि ये कब क्या कहकर मुकर जाऐं कुछ पता नहीं.........?अब कहते हैं कि महिलाओं को भी जाति के हिसाब से बाटा जाऐ.... समुदायों में बांटा जाऐ तब हो आरक्षण.......!
अब इन नेताओं को न जाने भगवान कब सद बुद्धी देगा.... जब भी समाज, जाति- समुदाय भूलना चाहती है तभी ये लोग उन्हें अहसास कराने के लिऐ तुरन्त प्रकट हो जाते हैं ताकि जनता याद रहे कि वह किस जाति और समाज या समुदाय से है । नेता जी को चिन्ता रहती है कि यदि आम आदमी को यह समझ में आ जाऐगी कि वह भारतीय है तो इनका तो सारा खेल ही खराब हो जाऐगा ।
वैसे भी इनकी आदत है कि हमेशा कुछ न कुछ तो मामला लटका ही रहना चाहिऐ ताकि नेता जी की दुकानदारी चलती रहे और कुछ कहने के लिऐ भी मसाला मिलता रहे....।यदि सारी समस्याऐ एक बर में हल होने लगी तो भला बाद में नेता जी क्या करेगें.......?इसलिऐ जरूरी है समस्या जहाँ की तहाँ बनी रहे ताकि उन्हें भी कुछ काम मिलता रहे ।क्योंकि किसी को सुकरात बनना है तो किसी को गाँधी बनना है....अब कौन क्या बन पाऐगा यह तो वक्त ही बताऐगा फिलहाल तो यदि कोई सही मायने में कुछ प्रतिशत इन्सान ही बन जाऐ तो वही काफी होगा.......!
डॉ. योगेन्द्र मणि
Saturday 13 June 2009
ठीकरा
ठीकरा
भारतीय राजनीति में आजकल एक शब्द बहुत ही प्रचलित होता जारहा है ,‘ठीकरा’ ।अब ‘ठीकरा’ बेचारा एसी निर्जीव तुच्छ वस्तु है जिसे हर कोई एक दूसरे के सिर पर ही फोडने के लिऐ आमादा रहता है। मजे की बात ये है कि ठीकरे को भी कभी कोई गुरेज नहीं , आपकी मर्जी आए जब चाहे जहाँ फोडो....आप चाहे अपने पडोसी के सिर पर फोडे या फिर दूसरे मोहल्ले किसी भी अनजान व्यक्ति के सिर पर फोडे...। बस शर्त ये ही है कि बाद की स्थिति का मुकाबला करने की आपमें क्षमता होनी चाहिऐ।‘ठीकरे’ की नियती तो फूटना ही है कहीं भी फूटेगा....लेकिन फूटेगा जरूर...!
हालाँकि शाब्दिक बाणों पर सवार होकर यह ‘ठीकरा’ कब किसके द्वारा किसके सिर पर फोडा जाऐगा इसका पता अच्छे- अच्छों को भी अन्तिम समय तक नहीं चल पाता है । इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हमारे सामने ही है कहीं जाने की भला क्या जरूरत है। जब से लोकसभा के चुनाव में अडवाणी ब्रीगेड धराशाई हुई है तभी से उन्हीं के लोग हाथों में ‘ठीकरा’ लिऐ घूम रहे हैं कि कहाँ और किसके माथे पर फोडें.......? अडवाणी जी के सपनों को जो ग्रहण लगा है उसकी चिन्ता किसी को नहीं है........बस लगे हैं सब हार के कारणों का पोस्टमार्टम करने......और ढूंढ़ रहें हैं कोई ऐसा मजबूत सिर जिस पर इस ठीकरे को फोडा जाऐ ।
पार्टी अध्यक्ष हैं कि किसी का सिर ‘ठीकरे ’के सही निशाने पर आने ही नहीं देते हैं या यूं कहिऐ कि अभी सबके सामने कुछ कहना ही नहीं चाहते हैं क्योंकि घर की बात घर में ही रहे तो अच्छा है ।हाँ उन्होंने एक काम जरूर किया है कि थानेदार की तरह फरमान जरूर जारी कर दिया है कि कोई भी नेता सबके सामने मुँह नहीं खोलेगा......।अभी पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आनी बाकी है रिपोर्ट आने पर मंथन किया जाऐगा....और इस मंथन की मथनी के चारों ओर जो मक्खन आऐगा उसकी जाँच करने के बाद ही कुछ कहा जा सकेगा......।
यशवंत सिन्हा हैं कि चुनाव के बाद से ही हाथों में ठीकरा लिऐ घूम रहें कि किसके सिर पर फोडूं....परन्तु राजनाथ ने सभी संभावित सिरों को फिलहाल सुरक्षा दे दी है। मगर सिन्हा हैं कि सब्र ही नहीं करपाऐ और दे दिया सभी पदों से स्तीफा....।जसवन्त सिंह हैं कि पहले से ही नहा घो कर तैयार बैठे हैं और शब्दों की जुगाली कर रहे हैं।
ऐसे में राज के नाथ ने भी सभी नेताओं के नकेल डालने का अच्छा तरीका निकाला है और फरमान जारी कर दिया कि कोई भी नेता घर के बाहर किसीसे कुछ नही कहेगा । अब यह एक अलग बात है कि अभी तो घर के अन्दर भी कोई सुनने वाला ही नहीं है तभी तो सभी अपने मन का गुबार निकालने की ताक में है लेकिन अब सभी के मुँह पर अनुशासन का ताला लगाने वालों ने ही लोकतन्त्र की दुहाई देते हुऐ चुनाव के समय एक-दूसरे के ऊपर कीचड उछालकर खूब जुबान चलाई थी लेकिन अब तू भी चुप मैं भी चुप......?
अब लोकतन्त्र तो केवल देश के लिऐ है उनकी पार्टी के लिऐ कोई है.....?मुझे तो लगता है कि अब इस पार्टी वालों को बी.जे.पी.से भारतीय जनता पार्टी नहीं बल्कि बहुत झगडालू पार्टी कहना चाहिऐ जो एक चुनावी हार को भी नहीं पचा पा रहे हैं।मेरे देश का रखवाला तो पहले ही ऊपर वाला ही था लेकिन अब इन राजनेताओं का रखवाला भी ऊपर वाला ही है क्योंकि अब तो वो ही है एक मात्र नाव क खिवैया...........?
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