जनजागृती पक्ष दैनिक समाचार-पत्र के स्थाई स्तम्भ में प्रकाशित व्यंग्य लेख

Friday 3 April 2009

करे कोई भरे कोई

करे कोई भरे कोई आउट-आउट हर जगह से एक ही आवाज आ रही है। पहले यह आवाज केवल क्रिकेट के खेल के मैदान से ही आती थी लेकिन आजकल यह आवाज राजस्थान बोर्ड के परीक्षा केन्द्रॊं से आ रही है। रोजाना कहीं न कहीं से शोर सुनाई देता है कि आज फंला पेपेर बाजार में बिक रहा है और आज फंला.........?आखिर माजरा क्या है ये तो ऊपर वाला ही जाने मगर भैय्या जी ने कुछ अजब ही दासता बयान की।भैय्या जी का कहना है कि गधे ने लात मारी राहगीर को जेल हो गई। हम उलझन में हमने कहा भैय्या जी बात क्या है हमारी कुछ समझ में नहीं आई। इसपर जुम्मन चाचा बोले -अखबार भी पढ़ते हो या केवल लिखते ही हो। कुछ पढ़ भी लिया करो।तुम्हें मालूम है एक परीक्षा केन्द्र पर दो दिन पहले ही आने वाला पेपर बांट दिया और जब गलती का अहसास हुआ तो सभी छात्राओं को वहीं स्कूल में ही अगली परीक्षा तक रोक लिया गया। इसपर भैय्या जी बोले - अब आप ही बताए कि उन लड़कियों का भला क्या दोष था जो उन्हें तीन दिन की सजा बैठे ठाले ही मिल गई।जुम्मन चाचा बोले- - वही तो मैं कह रहा हूँ कि गलती पेपर लाने वाले की , फिर बांटने वाले की, अब छात्राओं ने तो कहा नहीं था कि हमें आने वाला पेपर पहले चाहिऐ। भैय्याजी ने कहा --वह तो मीडिया में बात आ गई इससे लड़कियों को छोड़ना पड़ा वरना तीन दिन तन बिना अपराध के सजा ही हो गई थी उनेको तो.....?जुम्मन चाचा ने बात बढ़ाते हुऐ कहा _ तुम्हें मालूम है बोर्ड अध्यक्ष क कहना है कि मैनें कहा है लड़कियों को रोकने के लिऐ....। बात अजीब सी तो लगती है लेकिन है सोलह आने सही।वो तो भला हो जगरुक मीडिया का और साथ ही कुछ संगठनों का जिन्होंने बात को उठाया और बालिकाओं को आजाद कराया।वरना गुपचुप रूप से बालिकाओं को तो बिना बात ही हो गई थी जेल और जिसने गलती की वह मजे में घूम रहा था। -ठीक है मानविक भूल हो जाती है तो भला यह भी क्या तरीका हुआ....? अब लगता है राजस्थान बॊर्ड न हुआ कोई बिना पहरेदार की झोपडी हो गई जहां से कोई भी जाओ किसी भी पेपर को उठाकर बाजार में बेच आओ। और वे हैं कि रोजाना वही घिसा पिटा जबाब कोई पेपर आउट नहीं हुआ मात्र संयोग है कि कुछ प्रश्न मिल गये । वाह रे संयोग भाषा तक परीक्षा के पेपर से मिलती है इन गैस पेपर की। लगता है पूरे कूऐ में ही भाँग मिली हुई है । तभी तो किसी को कुछ सूझता ही नहीं है।इसपर बोर्ड अध्यक्ष जी का तुर्रा यह कि मेरे कहने पर रोका है लडकियों को ।सरकार कहती है कि जाँच करेगें....आखिर किसकी जाँच करना चाहती है सरकार ......!हमारी तो समझ से बाहर है।हालाँकि विद्यालय के वीक्षक तथा परीक्षा अधीक्षक को निलम्बित कर दिया है ।लेकिन जिसके आदेश पर छात्राओं को दो दिन तक की कैद भोगनी पड़ी उसका क्या हुआ.......?वो तो अभी तक मजे में हैं । गलत पेपर बांटने वालों को तो सजा मिलनी चाहिऐ, मिलेगी भी......लेकिन बोर्ड अध्यक्ष जी का क्या होगा कहीं कोई जिक्र ही नहीं है। और होना भी नहीं चाहिऐ ....?क्योंकि वे तो मालिक है और मालिक गलती करते ही नहीं......... वे तो केवल आदेश देते हैं या फिर सजा देते हैं.......बस.....तभी तो -- क्षमा बडन का हक बनें दिओ छोटों को लटकाय, इन अफसर के कारणे हम तुम धक्का खायें ॥ (जन जागृति पक्ष दैनिक में आज ०३/०४/०९ को ) डॉ.योगेन्द्र मणि