जनजागृती पक्ष दैनिक समाचार-पत्र के स्थाई स्तम्भ में प्रकाशित व्यंग्य लेख

Thursday, 18 June 2009

नारी बिल पर आरी

नारी बिल पर आरी ----------------------------------------------------------------------- एक जमाना था कि महिलाऐ चार दीवारी में कैद हो कर रह जाती थी । हालाँकि हमारे देश में नारियां सदैव से ही पूजनीय रही है। आप कहेंगे कि पूजनीय तो हमारे सभी देवी-देवता हैं लेकिन हम हमेशा उन्हें मन्दिर की चार दीवारी में ही कैद करके रखते हैं।आपकी बात भी सही है ,नारी भी तो देवी का दर्जा प्राप्त है .....?फिर भी पुरुष के आगे नारी की एक नहीं चलती है। और भला चले भी क्यों......चल गई तो हम पुरुष क्या भाड़ झोकेगें ..? लेकिन आज उसी पुरुष प्रधानता पर ग्रहण लगने का खतरा देख कुछ लोगों का पेट दुखने लगा है। तभी तो संसद में महिला आरक्षण बिल आज तक पास नहीं हो सका। जब भी कोई कोशिश हुई तो तुरन्त ही कोई भी दल या नेता टांग अडाने के लिऐ तैयार ही मिल जाता है और महिला आरक्षण हर बार खट्टे अंगूर की तरह बन कर ही रह जाता है। अब तो हमारे देश की प्रथम नागरिक महिला,लोकसभा की अध्यक्ष महिला, इसके साथ ही अप्रत्यक्ष रूप से सरकार की नकेल भी एक महिला के हाथों में है जो पर्दे के पीछे से ही सही आखिर सरकार में सबसे मजबूत हस्ति है। ऐसे में पुरुषों को महिला आरक्षण का सपना देख कर ही भरी गरमी में भी पसीने छूटने लगते हैं । तभी तो महिला आरक्षण बिल का नाम आते ही शरद यादव ने सुकरात की तरह जहर पीने तक धमकी दे डाली । उन्होंने सोच था कि पुरुषों की जमात उनके सुर में सुर मिलाते हुऐ उनके पीछे आ खडी होगी लेकिन जब उन्होंने पीछे मुडकर देखा तो मैदान ही खाली पडा था । कोई भी उनके शहीदी कार्यक्रम में शामिल होने के लिऐ तैयार ही नहीं हुआ। आखिर सभी को दोबारा भी महिलाओं से वोट लेने हैं।अब बेचारे यादव साहब भी क्या करते शुद्ध नेता की तरह फौरन ही बयान से पलट गये कि मेरा मतलब यह नहीं वह था....... महिलाओं को ऐसे नहीं वैसे आरक्षण देना चाहिऐ.......?आखिर नेता जो ठहरे वैसे भी आजकल सभी जानते है कि ये कब क्या कहकर मुकर जाऐं कुछ पता नहीं.........?अब कहते हैं कि महिलाओं को भी जाति के हिसाब से बाटा जाऐ.... समुदायों में बांटा जाऐ तब हो आरक्षण.......! अब इन नेताओं को न जाने भगवान कब सद बुद्धी देगा.... जब भी समाज, जाति- समुदाय भूलना चाहती है तभी ये लोग उन्हें अहसास कराने के लिऐ तुरन्त प्रकट हो जाते हैं ताकि जनता याद रहे कि वह किस जाति और समाज या समुदाय से है । नेता जी को चिन्ता रहती है कि यदि आम आदमी को यह समझ में आ जाऐगी कि वह भारतीय है तो इनका तो सारा खेल ही खराब हो जाऐगा । वैसे भी इनकी आदत है कि हमेशा कुछ न कुछ तो मामला लटका ही रहना चाहिऐ ताकि नेता जी की दुकानदारी चलती रहे और कुछ कहने के लिऐ भी मसाला मिलता रहे....।यदि सारी समस्याऐ एक बर में हल होने लगी तो भला बाद में नेता जी क्या करेगें.......?इसलिऐ जरूरी है समस्या जहाँ की तहाँ बनी रहे ताकि उन्हें भी कुछ काम मिलता रहे ।क्योंकि किसी को सुकरात बनना है तो किसी को गाँधी बनना है....अब कौन क्या बन पाऐगा यह तो वक्त ही बताऐगा फिलहाल तो यदि कोई सही मायने में कुछ प्रतिशत इन्सान ही बन जाऐ तो वही काफी होगा.......! डॉ. योगेन्द्र मणि

Saturday, 13 June 2009

ठीकरा

ठीकरा भारतीय राजनीति में आजकल एक शब्द बहुत ही प्रचलित होता जारहा है ,‘ठीकरा’ ।अब ‘ठीकरा’ बेचारा एसी निर्जीव तुच्छ वस्तु है जिसे हर कोई एक दूसरे के सिर पर ही फोडने के लिऐ आमादा रहता है। मजे की बात ये है कि ठीकरे को भी कभी कोई गुरेज नहीं , आपकी मर्जी आए जब चाहे जहाँ फोडो....आप चाहे अपने पडोसी के सिर पर फोडे या फिर दूसरे मोहल्ले किसी भी अनजान व्यक्ति के सिर पर फोडे...। बस शर्त ये ही है कि बाद की स्थिति का मुकाबला करने की आपमें क्षमता होनी चाहिऐ।‘ठीकरे’ की नियती तो फूटना ही है कहीं भी फूटेगा....लेकिन फूटेगा जरूर...! हालाँकि शाब्दिक बाणों पर सवार होकर यह ‘ठीकरा’ कब किसके द्वारा किसके सिर पर फोडा जाऐगा इसका पता अच्छे- अच्छों को भी अन्तिम समय तक नहीं चल पाता है । इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हमारे सामने ही है कहीं जाने की भला क्या जरूरत है। जब से लोकसभा के चुनाव में अडवाणी ब्रीगेड धराशाई हुई है तभी से उन्हीं के लोग हाथों में ‘ठीकरा’ लिऐ घूम रहे हैं कि कहाँ और किसके माथे पर फोडें.......? अडवाणी जी के सपनों को जो ग्रहण लगा है उसकी चिन्ता किसी को नहीं है........बस लगे हैं सब हार के कारणों का पोस्टमार्टम करने......और ढूंढ़ रहें हैं कोई ऐसा मजबूत सिर जिस पर इस ठीकरे को फोडा जाऐ । पार्टी अध्यक्ष हैं कि किसी का सिर ‘ठीकरे ’के सही निशाने पर आने ही नहीं देते हैं या यूं कहिऐ कि अभी सबके सामने कुछ कहना ही नहीं चाहते हैं क्योंकि घर की बात घर में ही रहे तो अच्छा है ।हाँ उन्होंने एक काम जरूर किया है कि थानेदार की तरह फरमान जरूर जारी कर दिया है कि कोई भी नेता सबके सामने मुँह नहीं खोलेगा......।अभी पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आनी बाकी है रिपोर्ट आने पर मंथन किया जाऐगा....और इस मंथन की मथनी के चारों ओर जो मक्खन आऐगा उसकी जाँच करने के बाद ही कुछ कहा जा सकेगा......। यशवंत सिन्हा हैं कि चुनाव के बाद से ही हाथों में ठीकरा लिऐ घूम रहें कि किसके सिर पर फोडूं....परन्तु राजनाथ ने सभी संभावित सिरों को फिलहाल सुरक्षा दे दी है। मगर सिन्हा हैं कि सब्र ही नहीं करपाऐ और दे दिया सभी पदों से स्तीफा....।जसवन्त सिंह हैं कि पहले से ही नहा घो कर तैयार बैठे हैं और शब्दों की जुगाली कर रहे हैं। ऐसे में राज के नाथ ने भी सभी नेताओं के नकेल डालने का अच्छा तरीका निकाला है और फरमान जारी कर दिया कि कोई भी नेता घर के बाहर किसीसे कुछ नही कहेगा । अब यह एक अलग बात है कि अभी तो घर के अन्दर भी कोई सुनने वाला ही नहीं है तभी तो सभी अपने मन का गुबार निकालने की ताक में है लेकिन अब सभी के मुँह पर अनुशासन का ताला लगाने वालों ने ही लोकतन्त्र की दुहाई देते हुऐ चुनाव के समय एक-दूसरे के ऊपर कीचड उछालकर खूब जुबान चलाई थी लेकिन अब तू भी चुप मैं भी चुप......? अब लोकतन्त्र तो केवल देश के लिऐ है उनकी पार्टी के लिऐ कोई है.....?मुझे तो लगता है कि अब इस पार्टी वालों को बी.जे.पी.से भारतीय जनता पार्टी नहीं बल्कि बहुत झगडालू पार्टी कहना चाहिऐ जो एक चुनावी हार को भी नहीं पचा पा रहे हैं।मेरे देश का रखवाला तो पहले ही ऊपर वाला ही था लेकिन अब इन राजनेताओं का रखवाला भी ऊपर वाला ही है क्योंकि अब तो वो ही है एक मात्र नाव क खिवैया...........?

Wednesday, 13 May 2009

थाली का बैंगन

थाली का बैंगन

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थाली के बैंगन की बडी ही विचित्र प्रवृति होती है।किसी को मालूम ही नहीं पडता कि कब किधर लुडक जाऐ।जिधर भी थोडा सा ढलान मिला बस ढल गया उसी के रंग में......!अब इन राजनैतिक दल को ही ले लो बैंगन और इन दलों में आपको कोई भिन्नता नहीं लगेगी ।आप सोचते होंगें कि कहाँ बैगन और कहाँ ये दल....?राजनीति में कोई भी स्थिर नहीं रहता मौका देख कर जब चाहे जहाँ लुडक जाता है, हमारे बैंगन महाराज भी सुविधा के अनुसार अपना स्थान बना ही लेते हैं । अब चुनाव तो लगभग समाप्ति की और हैं थोडे बहुत जो बचे हैं दो दिन में वे भी हो जाऐगें लेकिन सभी दलों को आभास होने लगा है कि वे कहाँ पर खडे हैं । तभी तोकुछ दिनों पहले तक एक दूसरे को आँखें दिखाने वाले दलों ने धीर-धीरे स्वर बदलने शुरू कर दिऐ है। क्योंकि पता नहीं जनता ने ई.वी.एम. में क्या इतिहास रचा है। इन नेताओं के चुनाव के पहले वोट लेनेवाले भाषण कुछ ओर होते है और चुनाव के बाद के इनके प्रवचन कुछ और ही होते है।प्रवचन इसलिऐ क्योंकि चुनाव के बाद किसी को भी बहुमत नहीं मिलने की स्थिती में सभी नेता अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार या यूं कहें कि सुविधा शुल्क के अनुसार देश के नाम पर जनता के सामने दिये गये भाषणों को भूल कर नई समीकरण बनाने में जुट जाते हैं ।देश हित में स्वयं का मान सम्मान तक दाव पर लगाने के लिऐ तैयार हो जाते हैं । सभी को चिन्ता रहती है कि यदि कोई भी सरकार नहीं बनी तो दोबारा से जनता के दरबार में हाजरी लगानी होगी।जनता का कोई भरोसा नही , कब किधर को मुँह उठा कर चल दे....?चुनाव के पहले वोट डलने तक जनता ही राजा होती है। प्रत्येक प्रत्याशी उसके सामने याचक होता है । चुनाव होने तक जनता जैसे नचाती है वह नाचने के लिऐ तैयार रहता है क्योंकि उसे मालूम है कि चुनाव जीतने के बाद तो वही जनता को पाँच साल तक नचाऐगा इसलिऐ अभी तो जनता जैसे भी कहती जाऐ करते जाओ अपने बाप का क्या जाता है..........? तभी तो अखबारों में रोजाना आता था कि फलां नेता ने गरीब की कुटिया में रोटियां सेकी....फलां ने धूल से सने बच्चों को गोदी में खिलाया......?चुनाव प्रचार से आने के बाद भले ही नेता जी को रोजाना खुश्बू वाली साबुन और शेम्पू का इस्तेमाल करना पडता हो लेकिन समाज सेवा के लिऐ सब कुछ करने के लिऐ तैयार रहना ही पडता है........! आखिर इसी को तो राजनीति कहते हैं। अब सभी छोटे-बडे दल और निर्दलीयों ने धीरे-धीरे अपने दरवाजे सभी के लिऐ खोल दिऐ हैं और जिसके दरवाजे कुछ ज्यादा टाइट बन्द हैं उन्होंने भी हवा की दिशा को भांपने का काम शुरू कर दिया है ताकि कल को किसी को भी शिकायत नहीं रहे कि वे लोकतन्त्र के रखवाले नहीं हैं। अब इसे आप थाली का बैगन कहें या कुछ और ...हमको क्या.....?वैसे बैंगन महाराज तो वैसे ही सर पर प्राकृतिक ताज लिऐ बैठे हैं और इन्हें ताज की जरूरत है....बस......! अब ताज के लिऐ थोड़ा बहुत इधर उधर लुडकना भी पड़े तो भला क्या फर्क पडता है। रही जनता की, तो जनता तो वैसे ही भोली है बाद में समझाते रहेंगे.....!! --

Friday, 8 May 2009

रंगत चुनाव की

मैं इधर जाऊँ या उधर जाऊँ........? ------------------------------------------------------------------------- ******************************************************************** -कहिऐ भैय्या जी कहाँ से आ रहे हो,और कहाँ जा रहे हो......? -आना जाना क्या है ,चुनाव प्रचार में लगे हैं कॉग्रेस के प्रत्याशि के प्रचार से आये हैं , शाम को भाजपा के प्रचार में जाना है । -ये क्या कह रहे हैं भैय्या जी...कॉग्रेस और भाजपा दोनों का ही प्रचार ........? -तो क्या हुआ, कल तो हम निर्दलीय प्रत्याशि के प्रचार में गये थे....। -कभी इस पार्टी का तो उस का....और साथ में निर्दलीय का भी प्रचार हमारी कुछ समझ में नहीं आया भैय्या जी........? -इसमें समझना क्या है भला......यहाँ हमें कॉग्रेसी पसन्द है इसलिऐ उसका प्रचार कर रहे हैं वहाँ भाजपा का प्रत्याशि पसन्द है इसलिऐ वहाँ उसका प्रचार कर रहें हैं हमारी इच्छा जिसका प्रचार करें ....। -लेकिन भैय्या जी कोई सिद्धान्त, कोई विचार धारा तो होनी चाहिऐ । किसी एक का समर्थन करो...किसी एक के प्रति वफादारी होनी चाहिऐ.....। -कैसे सिद्धान्त कैसी विचारधारा.......आप क्या समझते हैं जो आज जिस झण्डे के नीचे खडा होकर चुनाव लड रहा है कल आपको उसी झण्डे के नीचे मिलेगा.........? -क्यों नहीं मिलेगा भला....किसी विचार धारा और एजेण्डे को लेकर ही तो ये चुनाव लड रहे हैं तो भला कल चुनाव जीतने के बाद भी तो वादा निभायेगें ही.........? - आप भी कैसी बातें करते हैं ये हाथी के दांत खाने के ओर दिखाने के ओर होते हैं ।हम किसी पार्टी वार्टी से बन्ध कर नहीं रहते जो जीती वही है हमारी पार्टी .......।अब आप हमारे नेताजी को ही देख लीजिऐ.....चुनाव लड रहे हैं निर्दलीय...दौसा से......अपनी श्रीमती जी को बनवा रखा है राजस्थान सरकार में मन्त्री और प्रचार कर रहे हैं भीलवाडा में कॉग्रेस प्रदेश अध्यक्ष का, तो कोटा में आर.एस.एस के श्याम शर्मा का जो कि भाजपा से चुना लड रहे हैं और साथ ही जालौर से नि्र्दलीय सरदार बूटासिंह का....जब वे अलग अलग दिन अलग -अलग सुर में प्रचार कर सकते हैं तो भला हमारा क्या......। अब देखा जाये तो भैय्या जी की बात में दम तो है।कभी ये नेता जी जनता के बीच गला फाड कर कहते हैं किभाजपा सरकार भ्रष्ट है और दूसरे ही पल दलील देने लगते है कि कॉग्रेसी धोकेबाज हैं। अपने आप को बडे नेता कहलाने वालों को ही अभी तक समझ नहीं आ रहा है कि उन्हें करना क्या है तो जनता को भला वे क्या राह दिखाऐगें।कभी तो इन्हें कॉग्रेस में देश का उज्जवल भविष्य नजर आता है तो कभी वापस मन भटक कर भाजपा की नैय्या में बैठने को लालायित होता है....तो कभी पार्टी विहीन राजनीति की ओर भागना शुरू कर देते हैं। कभी जनजाति विशेष के नेता बन करकर समाज के सामने आते हैं तो कभी आम जन के नेता बनने का नाटक रचाते हैं । एक साथ कई नावों पर सवार ये लोग शायद सोचते हैं कि जनता तो अपनी ही है, सीधी साधी जिसे जैसे चाहो उल्लू बना लो....। क्योकि उनका तो एक ही लक्ष्य है कि कैसे भी कुर्सी अपने कब्जे में आनी चाहिऐ.....भले ही कैसे भी जतन से आये ...किसी के भी कन्धे पर चढ़कर मिले या किसी को भी रास्ते में ही धक्का दे कर मिले ........जनता का क्या है उसके सामने अब वापस पाँच साल बाद ही तो आना है......! ( दैनिक जन जागृति पक्ष में मेरे कालम से .05-05-09)

रंगत चुनाव की

(दैनिक जन जागृति पक्ष में मेरे कालम से दि.04/05/06) आई.पी.एल.पर आई.पी एल भारी ______________________________________________________________________ चुनावी सरगर्मियों का जायजा लेनेके लिऐ हमने भैय्या जी से पूछा-क्यों भैय्या जी कैसा चल रहा है चुनाव प्रचार....?हमारा यह पूछना था कि मायूस होकर बोले-क्या खाक चुनाव प्रचार....दिन में तो चिलचिलाती धूप पीछा नहीं छोडती और शाम के बाद सोचते हैं कि थोडा ठंडक में कुछ प्रचार किया जाऐ तो ससुरा ये टी.वी. लोगों का पीछा नहीं छोडता है...। _हम सोच में पड गये कि टी.वी. और चुनाव प्रचार का भला क्या लेना देना।हमने कहा--टी.वी. पर चानाव के लिऐ कोई विशेष धारावाहिक आ रहा है क्या.....? --अजी धारावाहिक को मारो गोली....आजकल तो सभी सीरियल की भी ऐसी -तैसी हो रही है इस क्रिकेट के भूत के कारण....? --क्रिकेट का भूत और टी वी पर क्या कह रहे हो भैय्या जी....? --आप भी भला क्यों समझकर भी अनजान बन रहे हैं। आपको मालूम है कि आजकल डबल-डबल आई.पी. एल.मैच चल रहे हैं.....। --आप क्या कहना चाह रहे हैं मुझे तो भैय्या जी कुछ समझ में नहीं आ रहा है ....? --आपको मालूम है कि एक आई.पी. एल, मैच क्रिकेट का चल रहा है अफ्रीका में जो कि पहले भारत में ही होने वाला था लेकिन यहाँ पर नेता जी को दूसरा आई. पी. एल. मैच जो करवाना था इसलिऐ क्रिकेट मैच जा पहुँचा अफ्रीका और नेता जी का आई.पी एल यानी-इण्डियन प्राइमिनिस्टर लीग मैच हो रहा है भारत में ......। देश के लोकतन्त्र के लिऐ ये मैच भी जरुरी हैं लेकिन हमारे देश की जनता है कि नेताओं को लिफ्ट ही नहीं दे रही है ।तभी तो यहाँ होने वाले राजनीतिक मैच फ्लाप हो रहे हैं लोग घरों से ही नहीं निकल रहे हैं। -- भैय्या जी आप ये क्या कह रहे हैं भला....क्या लोगों के लिऐ आजकल चुनाव से भी ज्यादा जरूरी क्रिकेट का मैच हो गया है.......। --आप किसी से भी पूछ लो कि आज कौन-कौन सी टीम का मैच होगा तो बच्चा-बच्चा भी बता देगा,लेकिन चुनाव के बारे में पूछो कि आपके यहाँ से कौन-कौन चुनाव लड रहा है तो दो नाम बताकर ही टांय-टांय फिस्स हो जाऐगा....! वास्तव में देखा जाऐ तो भैय्या जी की बात भी सही है ।शाम हुई नहीं कि सभी चिपक जाते हैं अपने-अपने घरों में टी.वी. के सामने...।अपने शहर में कितने उम्मीदवार चुनाव लड रहे हैं शायद ही किसी को मालूम हो। किसी से वोट की बात भी करो तो सीधा जबाब देता है कि हमें क्या.... कोई भी जीते और कोई भी हारे हमारी बला से......?अब देश के ऐसे पढ़े लिखे नासमझों को भला कॊई कैसे समझाऐ कि इन चुना्वों से आपको ही तो सबसे ज्यादा लेना देना है...आपको ही तो ध्यान रखना है कि हमारे देश का नेतृत्व अच्छे लोगों के हाथों में रहे ताकि हम विश्व में सम्मान से सिर उठा कर जी सकें और हमारा देश निरन्तर आगे बढ़ता जाऐ......।

रंगत चुनाव की

(जन जागृति पक्ष में मेरे कॉलम से दि.03/05/09) जनता सब जानती है चुनावी गर्माहट के साथ ही राजस्थान में मुख्य मन्त्री गहलोत और पूर्व मुख्य मन्त्री वसुन्धरा का वाकयुद्ध भी तेज होता जा रहा है।गहलोत जहाँ वसुन्धरा राज में हुऐ भ्रष्टाचार को कोस रहे हैं वहीं पर वसुन्धरा गहलोत के वित्तीय कुप्रबन्धन का राग अलाप रही हैं।दोनों ही एक दूसरे पर राजस्थान सरकार के काम काज को लेकर टांग खिचाई कर रहे हैं।दोनों की ही भाषा से लगता है कि इन्हें अभी तक भी इस बात का अहसास नहीं हो पाया है कि विधान सभा के चुनाव तो कभी के समाप्त हो गये अब लोकसभा के चुनाव आ गये हैं। खींचा तानी ही करनी है तो कोई राष्ट्रीय मुद्दालो और उस पर बहस करो....?सरकार दिल्ली की बननी है बातें राजस्थान सरकार की हो रही हैं। चुनाव का मात्र एक सप्ताह ही रह गया है अब तो कम से कम मुद्दे की बात पर आजाओ........? जयपुर से दिल्ली की राह की योजनाओं से जनता को अवगत कराओ।जनता को अपना घोषणा पत्र बताओ........!आपसी खीचतान में जनता को उल्लू क्यों बनाते हो भाई....जनता सब समझती है......लेकिन यह बात इन नेताओं को कौन समझाये कि ये गहलोत या वसुन्धरा की सरकार के चुनाव नहीं है लोकसभा के चुनाव है...........! ______________________________________________________________________________________________________________ कुछ तो धीर धरो लालू ________________________________________________________________ मौसम कैसा भी गरम क्यों न हो जाऐ लेकिन राजनीति में नेता जी का तापमान यदि बढ़ने लगता है तो यह उनकी सेहत के साथ ही राजनीति केलिऐ भी अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता ।लेकिन अपने रेल मन्त्रीजी हैं कि मौसम के साथ-साथ उनके दिमाग का पारा भी सातवें आसमान पर पहुँचने कग गया है । तभी तो सरे आम अपने सुरक्षा गार्ड को ही लताड दिया।एक तो चु्नाव का माहौल उसपर रोजाना बनते बिगडते राजनीतिक समीकरण.....हो सकता है कि चुनावी नतीजों की आहट आपके पक्ष में नहीं आ रही हो लेकिन इसका मतलब यह तो कदापि नहीं कि आप सरेआम किसी पर भी पिल जाऐं और कहीं भी किसी पर भी अपनी भडास निकालने लग जाऐं.....? जनता सब देख रही है सुन रही है.....यह जनता का दरबार है बन्धु ..आपकी लगाम फिलहाल तो जनता के ही हाथों में है....। ऊँट किस करवट बैठाना है यह तो जनता को ही तय करना है...इसलिऐ थोडा तो धैर्य धरियेगा वरना जनता तो जनता ही है. कि उसे क्या करना है। वो अभी तो सब कुछ कर सकती है,इसलिये संभलिऐगा कहीं ऐसा न हो कि बाद में यही कहना पडे कि अब पछताने से क्य फायदा जब चिडिया चुग गई खेत......?

Saturday, 2 May 2009

रंगत चुनाव की

( दैनिक जन जागृति पक्ष में मेरे कॉलम से दि.02/04/09 ) कॉग्रेसी बनो युवराज जी देश में आधी से भी अधिक सीटों पर चुनाव हो चुके हैं। एक सप्ताह बाद राजस्थान में भी चुनाव हो जाऐगें।परन्तु कॉग्रेस पार्टी अभी तक भी कोटा बून्दी से पार्टी के प्रत्याशी महाराज कुमार इज्यराज सिंह् को कॉग्रेसी बनाने के प्रयास में ही जुटी है। ये हम नहीं कॉग्रेस के ही महामन्त्रि जी की सलाह है।वैसे हमने तो सोचा था कि इतनी बडी पार्टी है उन्होंने किसी कॉग्रेसी को ही टिकिट दिया होगा लेकिन असली पोल तो पार्टी के महामन्त्री दिग्विजय सिंह ने पार्टी के सम्मेलन में ही यह कहकर खोल दी कि "युवराज को पूरी तरह से कॉग्रेसी बनायें".....।हमें ही क्या आपको भी आश्चर्य हुआ ही होगा कि अधूरे कॉग्रेसी को यहाँ से प्रत्याशी बनाया गया हैं। शायद उनके पास पूरा कॉग्रेसी प्रत्याशी नहीं था या फिर पूर्ण कॉग्रेसी पर पार्टी को ऐतबार नहीं था। अब हकीकत क्या है यह तो आलाकमान ही बता सकता है लेकिन हम जैसे कम बुद्धी वालों के लिऐ तो धर्म संकट खडा हो गया है कि आधे अधूरे कॉग्रेसी को वोट दे या फिर या फिर महाराज कुमार को.....या अन्य किसी उम्मीदवार को ही टटोला जाये............??_______________________________________________________________________________________ वाह नेता जी _____________________________________________________________________________________ राजस्था सरकार केगृह-मन्त्री जैसे जिम्मेदार पद को सुशोभित कर चुके नेता जी भी चुनावी गर्मी में आपा ही खोते जा रहे हैं । न जाने उन्हें अचानक क्या हो गया कि गॉधी नहरू परिवार पर डंडा लेकर पिल गये । एक दूसरे की टांग खिचाई तो खैर कोई बात नही लेकिन एक जिम्मेदार नेता होने के नाते आप तो गाली गलोच पर ही उतर आये। देश को अनुशासन की सीख देने वाले और कानून व्यवस्था को बनाने रखने की जिम्मेदारी का निर्वाह कर्ने की ओरों को सॊख देनेवाले आज स्वयं ही गाली गलोच जैसी भाषा पर उतारू होने लगें तो आम आदमी को भला वे कैसे समझा सकते हैं.......।--