जनजागृती पक्ष दैनिक समाचार-पत्र के स्थाई स्तम्भ में प्रकाशित व्यंग्य लेख

Thursday 2 April 2009

लड्डू उनकी जेब का

लड्डू उनकी जेब का कई बार इधर उधर से आवाजें आती रहती हैं कि वह अब आई-अब आई...खुल गई,खुलने वाली है.......और अब तो ही गई ......?आप सोचते होगें क्या पहेली है भला ......? तो जनाब राजस्थान में अभी पिछले दिनों महारानी जी का राज था,आपको मालूम है अब आप कहेंगें इसमें नया क्या हुआ....?नया तो कुछ नहीं पर महारानी जी ने कोटा वासियों के दिल में एक सपना जगाया था आई.आई. टी का ।बस तभी से कोटा वासियों को रात में बार बार आई.आई.टी. के हसीन और डरावने ख्वाब दिखाई देते रहते हैं।सबको लगता रहता है कि बस अब आई अब आई आई.आई.टी. कोटा की झोली में ।जब कभी भी अखबारों के किसी कोने में आई.आई.टी.छपा नहीं कि घंटाघर से लेकर पतली लम्बी गलियों तक में विशेषज्ञों की तरह हर कोई अपने ज्ञान का पिटारा खोल कर बैठ जाऐगा जैसे अभी तक सो- पचास यूनिवर्सिटी का कुलपति रह चुका हो.....।गोया आई.आई.टी.न हुई कोई अलादीन का चिराग हाथ लग जाऐगा जिससे कोटा रातों रात मुंबईया चेन्नई बन जाऐगा। अभी कल ही मैनें जुम्मन चाचा से यूँ ही पूछ लिया-आई.आई.टी. यदि कोटा में खुल जाऐ तो तुम्हें कैसा लगेगा.....?इसपर वे तुरन्त बोले -ये भी कोई सवाल हुआ.....।मुझे अच्छा लगे या बुरा किसी पर क्या फर्क पडता है....?पूछना ही है तो यह पूछो कि नेताओं को कैसा लगेगा..........यदि आई.आई.टी.आई तब भी और नहीं आई तब भी....? तभी दूसरे कोने से भैय्या जी प्रकट होते हुऐ बोले-जब यहाँ उनकी सरकार थी तो मौजूदा सरकार वाले टांग खिचाई करते हुऐ कहते थे कैसी सरकार है दमदारी से बात नहीं कह पा रही कोटा के हक को हम लेकर रहेगें .......।लेकिन आज जब यहाँ भी उनका राज और वहाँ भी उनका राज तब भला इनके मुँह पर ताले कैसे पडे है समझ नहीं आता ....? हमारे मुख्यमंत्री जी कहते हैं गृहमंत्री आपका सडक मंत्री आपका ,पंचायत मंत्री आपका.....हाडोती के तीन-तीन दमदार नेता है ।लेकिन अर्जुन सिंह की हेकडी कहें या गहलोत जी की आंतरिक मंशा.......कि इन दमदारों की बोलतॊ बंद है......? अब देखा जाऐ तो आई.आई.टी की राजनीति केवल घंटाघर से होते हुऐ रेलवे स्टेशन के प्लेट्फार्म पर दिल्ली का रास्ता ही भूल जाती है।यहाँ तो स्थिति यह हो गई है कि जब भी किसी को सपने में आई.आई.टी. की फोटो दिख जाती है तो दूसरे ही दिन चार आदमियों को साथ लेकर चल देता है ज्ञापन देने ।अखबारों में समचार आ जाता है फोटो छप जाती है बस हो गया अपना पूरा कर्तव्य....? लिखा दिया हमनें भी आई.आई. टी. के लिऐ आंदोलनकारियों में अपन नाम ......\ बस इतने से ही सीना चार इंच फूल जाता है। हो गया उपकार कोटा की जनता पर .......!अब और बेचारे इससे ज्यादा कर भी क्या सकते हैं....? अब भला इन्हें कौन समझाऐ कि अर्जुन सिंह के अडियाल दंभ को तोडने के लिऐ इससे कुछ नहीं होगा । क्यॊकि लगता है कोटा वालों ने पिछले जनम में जरूर कोई बुरे कर्म किऐ होगें तभी तो इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा तक के सेंटर भी उन्होंने कोटा से हटा दिये और नेता जी खामोश हैं क्योंकि उनके बच्चों को तो देनी ही नहीं हैं ये परीक्षाऐं.....। हमारी जनता भी कितनी भॊली है कि बेचारी दूसरों के भरोसे बैठी है।बंधु जागो अब तो जागो.....? अब दिल्ली दरबार का दरवाजा खटखटाना पडेगा...और उन्हें अच्छी तरह समझाना पडेगा कि यह कोई उनकी जेब का लड्डू नहीं है जो जब चाहा दिखा दिया जब चाहा किसीको भी जाकर थमा दिया..........? (कोटा राज से प्रकाशित जनजगृती पक्ष दैनिक में २।०४।०९ को छपा )डॉ.योगेन्द्र मणि

तलाश उम्मीदवार की

तलाश उम्मीदवार की चुनाव तो चुनाव हैं चाहे पंचायत समिती के हों ,नगर पालिका, निगम या फिर विधान सभा अथवा लोकसभा के ही क्यों न हों ।चुनाव की घोषणा हुई नहीं कि घण्टाघर की तंग गलियों से लेकर जुम्मन चाचा और र्भैय्या जी की जुबान पर चुनाव को लेकर कभी भी वाक युध्द छिड़ जाता है।कमल वालों ने तो अपने उम्मीदवार को जनता के आगे लाकर खड़ा कर दिया लेकिन हाथ वालों के हाथ अभी खाली ही हैं । बस इसी बात को लेकर जुम्मन चाचा और भैय्या जी उलझे हैं। भैय्या जी बड़ी सोच में है बोले-जुम्मन चाचा, कॉग्रेस पार्टी का उम्मीदवार कहाँ गायब हो गया जो अभी तक मिल ही नहीं रहा है। आखिर माजरा क्या है ? जुम्मन चाचा तपाक से बोले यह बात तुम मुझसे क्यों पूछ रहे हो...--? मैं कोई पार्टी का नेता हूँ --?भैय्या जी तुरन्त बोले नहीं मैं तो यूँ ही जिक्र कर रहा था ।अब बॉरा-झालावाड़ में तो नये नेता भाया जी तुरन्त अपने घर का ही उम्मीदवार ले आये,फिर यहाँ भला कैसा अकाल पड़ा है जो इन्हें कोई मिल ही नहीं रहा । जुम्मन चाचा बोले-तुम्हें मालूम नहीं यहाँ नेताओं की कमी थोडा ही है यहाँ तो हर कोई लाइन में लगा है।सवाल यह है कि आखिर टिकट दें तो दें किसको.....?भैय्या जी ने बात बढाते हुऐ कहा - हमें तो लगता है यहाँ पार्टी की नाक के सवाल से ज्यादा अब गृहमंत्री जी की नाक का आ गया है। इसपर जुम्मन चच बोले-देखा जाऐ तो हमें भी कुछ ऐसा ही लग रहा है।एक तरफ जहाँ बॉरा-झालावाड़ क्षेत्र में नये मन्त्री जी अपने पैर मजबूत करने में लगे हैं वहीं हमारे गृहमन्त्री जी तो पहले से ही मजबूत है ,वे भला अपने क्षेत्र में किसी भी ऐसे व्यक्ति को टिकिट क्यॊं दिलाऐगें जिससे उनके नम को बट्टा लगे । कल को लोग भला क्या कहेगें ?जो आदमी पूरे प्रदेश की व्यवस्था सम्भालें हुऐ हैं लेकिन अपना शहर ही नहीं सम्भाल पा रहा है। हमारे विचार से अब सबसे बड़ा झमेल तो यह फंस गया कि हडोती के दो ऐसे मन्त्री जो आपस में गुरू चेले भी है।दोनों की ही शन का सवाल है।चेले जी के करण बरसों बाद कॉग्रेसियों को उम्मीद जगी है कि वे महारानी जी के लाड़ले का सामना भी कर सकेगॆं। वरना अभी तक तो केवल मजबूरी में ही किसी न किसी कॊ बळी का बकरा बनना पड़ता था महारानी जी के सामने। अब ये भी उम्मीदवार घोषित करें भी तो कैसे करें ,जहाँ एक तरफ किरोडी़ जी का रोडा़ बीच में आता है तो दूसरी तरफ गुंजल की गूँज कानों तक पहुँचती है।इन सब के बीच धरीवाल जी की धार का भी सवाल अटका हुआ है।क्योंकि कहीं एसा न हो जाऐ कि फाइनल परीक्षा में गुरूजी के नम्बर कम न आ जाऐं-----? वरना कल को लोग तो ये ही कहेंगे कि गुरू जी तो गुड़ रह गये और चेला-------???आपके साथ हम भी थोड़ा और कर लेते हैं इंतजर देखते है कि आखिर ऊँट किस करवट बैठता है --- ? (उपरोक्त लेख कोटा से प्रकाशित -जनजागृती पक्ष दैनिक समाचार पत्र १.०४.०९के अंक में मेरे स्थाई स्तम्भ में छपा है) डॉ. योगेन्द्र मणि