जनजागृती पक्ष दैनिक समाचार-पत्र के स्थाई स्तम्भ में प्रकाशित व्यंग्य लेख

Saturday 2 May 2009

रंगत चुनाव की

( दैनिक जन जागृति पक्ष में मेरे कॉलम से दि.02/04/09 ) कॉग्रेसी बनो युवराज जी देश में आधी से भी अधिक सीटों पर चुनाव हो चुके हैं। एक सप्ताह बाद राजस्थान में भी चुनाव हो जाऐगें।परन्तु कॉग्रेस पार्टी अभी तक भी कोटा बून्दी से पार्टी के प्रत्याशी महाराज कुमार इज्यराज सिंह् को कॉग्रेसी बनाने के प्रयास में ही जुटी है। ये हम नहीं कॉग्रेस के ही महामन्त्रि जी की सलाह है।वैसे हमने तो सोचा था कि इतनी बडी पार्टी है उन्होंने किसी कॉग्रेसी को ही टिकिट दिया होगा लेकिन असली पोल तो पार्टी के महामन्त्री दिग्विजय सिंह ने पार्टी के सम्मेलन में ही यह कहकर खोल दी कि "युवराज को पूरी तरह से कॉग्रेसी बनायें".....।हमें ही क्या आपको भी आश्चर्य हुआ ही होगा कि अधूरे कॉग्रेसी को यहाँ से प्रत्याशी बनाया गया हैं। शायद उनके पास पूरा कॉग्रेसी प्रत्याशी नहीं था या फिर पूर्ण कॉग्रेसी पर पार्टी को ऐतबार नहीं था। अब हकीकत क्या है यह तो आलाकमान ही बता सकता है लेकिन हम जैसे कम बुद्धी वालों के लिऐ तो धर्म संकट खडा हो गया है कि आधे अधूरे कॉग्रेसी को वोट दे या फिर या फिर महाराज कुमार को.....या अन्य किसी उम्मीदवार को ही टटोला जाये............??_______________________________________________________________________________________ वाह नेता जी _____________________________________________________________________________________ राजस्था सरकार केगृह-मन्त्री जैसे जिम्मेदार पद को सुशोभित कर चुके नेता जी भी चुनावी गर्मी में आपा ही खोते जा रहे हैं । न जाने उन्हें अचानक क्या हो गया कि गॉधी नहरू परिवार पर डंडा लेकर पिल गये । एक दूसरे की टांग खिचाई तो खैर कोई बात नही लेकिन एक जिम्मेदार नेता होने के नाते आप तो गाली गलोच पर ही उतर आये। देश को अनुशासन की सीख देने वाले और कानून व्यवस्था को बनाने रखने की जिम्मेदारी का निर्वाह कर्ने की ओरों को सॊख देनेवाले आज स्वयं ही गाली गलोच जैसी भाषा पर उतारू होने लगें तो आम आदमी को भला वे कैसे समझा सकते हैं.......।--

रंगत चुनाव की

जनता सब जानती है गर्माहट के साथ ही राजस्थान में मुख्य मन्त्री गहलोत और पूर्व मुख्य मन्त्री वसुन्धरा का वाकयुद्ध भी तेज होता जा रहा है।गहलोत जहाँ वसुन्धरा राज में हुऐ भ्रष्टाचार को कोस रहे हैं वहीं पर वसुन्धरा गहलोत के वित्तीय कुप्रबन्धन का राग अलाप रही हैं।दोनों ही एक दूसरे पर राजस्थान सरकार के काम काज को लेकर टांग खिचाई कर रहे हैं।दोनों की ही भाषा से लगता है कि इन्हें अभी तक भी इस बात का अहसास नहीं हो पाया है कि विधान सभा के चुनाव तो कभी के समाप्त हो गये अब लोकसभा के चुनाव आ गये हैं। खींचा तानी ही करनी है तो कोई राष्ट्रीय मुद्दालो और उस पर बहस करो....?सरकार दिल्ली की बननी है बातें राजस्थान सरकार की हो रही हैं। चुनाव का मात्र एक सप्ताह ही रह गया है अब तो कम से कम मुद्दे की बात पर आजाओ........? जयपुर से दिल्ली की राह की योजनाओं से जनता को अवगत कराओ।जनता को अपना घोषणा पत्र बताओ........!आपसी खीचतान में जनता को उल्लू क्यों बनाते हो भाई....जनता सब समझती है......लेकिन यह बात इन नेताओं को कौन समझाये कि ये गहलोत या वसुन्धरा की सरकार के चुनाव नहीं है लोकसभा के चुनाव है...........! ______________________________________________________________________________________________________________ कुछ तो धीर धरो लालू जी ______________________________________________________________________ मौसम कैसा भी गरम क्यों न हो जाऐ लेकिन राजनीति में नेता जी का तापमान यदि बढ़ने लगता है तो यह उनकी सेहत के साथ ही राजनीति केलिऐ भी अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता ।लेकिन अपने रेल मन्त्रीजी हैं कि मौसम के साथ-साथ उनके दिमाग का पारा भी सातवें आसमान पर पहुँचने कग गया है । तभी तो सरे आम अपने सुरक्षा गार्ड को ही लताड दिया।एक तो चु्नाव का माहौल उसपर रोजाना बनते बिगडते राजनीतिक समीकरण.....हो सकता है कि चुनावी नतीजों की आहट आपके पक्ष में नहीं आ रही हो लेकिन इसका मतलब यह तो कदापि नहीं कि आप सरेआम किसी पर भी पिल जाऐं और कहीं भी किसी पर भी अपनी भडास निकालने लग जाऐं.....? जनता सब देख रही है सुन रही है.....यह जनता का दरबार है बन्धु ..आपकी लगाम फिलहाल तो जनता के ही हाथों में है....। ऊँट किस करवट बैठाना है यह तो जनता को ही तय करना है...इसलिऐ थोडा तो धैर्य धरियेगा वरना जनता तो जनता ही है. कि उसे क्या करना है। वो अभी तो सब कुछ कर सकती है,इसलिये संभलिऐगा कहीं ऐसा न हो कि बाद में यही कहना पडे कि अब पछताने से क्य फायदा जब चिडिया चुग गई खेत......?

रंगत चुनाव की

विवाह सम्मेलनों में चुनावी खिचडी एक तो मौसम की गर्मी,दूसरी ओर शादियों की भरमार और उसपर चुनावी मौसम है कि नेताजी को दौड लगाने को मजबूर किये जाता है । वे सभी को अपनी कहानी सुनाने को बेताब है । किसीकी शादी हो या अन्य कैसा भी जरूरी काम हो आजकल नेता जी को बस एक ही फितूर सवार है कि कैसे भी अधिक से अधिक लोगों से मुलाकात की जाऐ।सामूहिक विवाह सम्मेलन आजकल नेताजी बडा पसन्द आ रहा है । अब नेता जी भले ही किसी भी पार्टी के हों सा्मूहिक विवाह सम्मेलन में चुनावी खिचडी का तडका तो लग ही जाता है। सभी जाति और पार्टी के नेताजी सम्मेलन की खुशबू लगते ही वहाँ हाजरी लगाने की पूरी-पूरी कोशिश में रहते हैं।एक साथ अनेक लोगॊं से मुलाकात तो हो ही जाती है साथ ही चुनावी राम-राम भी हो जाती है ।वहाँ इनके वोटर कितने हैं भला इस बात से किसी को क्या लेना -देना......। नेता जी के साथ चलने वाले लश्कर को तो बस यह सन्तुष्टी हो जाती है कि आज इतने लोगों से मुलाकात हो गई । अब नतीजा क्या रहेगा ये तो राम ही जाने, हमारा तो काम है सो कर दिया.....वैसे भी ऐसी तपती दुपहरी में सम्मेलनों में मेल-जोल बढाने से अच्छा हो भी क्या सकता है।सम्मेलन वाले भी धन्य और नेताजी तो धन्य हो ही जाते हैं। _____________________________________________________________________________________________________________ जागो....अब तो जगो......! _______________________________________________________________________________________________________________ कल ही महा नगर के एक जागरुक दिखने वाले जीव से हमने पूछ-आपके यहाँ से कौन-कौन चुनाव में खडे हो रहे हैं ?वे बोले -पता नहीं.....। हमें आश्चर्य हुआ कि कैसा भरतीय नागरिक है और वह भी पढा लिखा पोस्ट ग्रेजुएट..?हमने फिर भी हिम्मत कर पूछा- किस -किस पार्टी के उम्मीदवार चुनाव लड रहे हैं - वो फिर बोले - पता नहीं......?हम परेशान कैसा प्राणी है। हमने फिर भी सावाल किया -आप रहते कहाँ हैं -वे सज्जन झल्लाकर बोले -आपको परेशानी क्या है, यहीं रहता हूँ। सरकारी कर्मचारी हूँ । बोलो क्या कर लोगे....? भला हम क्या कर सकते थे ?फिर भी हमने उन्हें समझाया कि आप भारतीय नागरिक हैं संविधान ने आपको मौका दिया है आपकी मन पसन्द सरकार चुनने का तो कम से कम तुम्हें यह तो मालूम होना ही चाहिये कि तुम्हारे क्षेत्र से कौन -कौन लोकसभा में जाना चाहता है और तुम भी अच्छी सरकार को चुनने में भगीदार बनों....?वे तपाक से बोले- भाई साहब सरकार किसी की भी बने मुझे उससे क्या लेनादेना। सरकार से मुझे वेतेन तो बराबर ही मिलेगा वोट दूं तब भी और वोट नहीं दूगा तब भी...?अब सोये हुऐ पढेलिखे लोगों को भला कौन कैसे समझाऐ कि सरकार का चुनाव करना हमारा कर्तव्य ही नहीं अधिकार भी है और हर जागरुक नागरिक को इस अधिकार का पूरा-पूरा उपयोग करना चाहिऐ....।नही तो गलत लोगों के चयन पर पाँच साल तक तुम्हें पछताना होगा। इसलिऐ जागो बन्धु जागो.......अब तो जाग ही जाओ......!