जनजागृती पक्ष दैनिक समाचार-पत्र के स्थाई स्तम्भ में प्रकाशित व्यंग्य लेख
Friday 8 May 2009
रंगत चुनाव की
मैं इधर जाऊँ या उधर जाऊँ........?
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-कहिऐ भैय्या जी कहाँ से आ रहे हो,और कहाँ जा रहे हो......? -आना जाना क्या है ,चुनाव प्रचार में लगे हैं कॉग्रेस के प्रत्याशि के प्रचार से आये हैं , शाम को भाजपा के प्रचार में जाना है ।
-ये क्या कह रहे हैं भैय्या जी...कॉग्रेस और भाजपा दोनों का ही प्रचार ........?
-तो क्या हुआ, कल तो हम निर्दलीय प्रत्याशि के प्रचार में गये थे....।
-कभी इस पार्टी का तो उस का....और साथ में निर्दलीय का भी प्रचार हमारी कुछ समझ में नहीं आया भैय्या जी........?
-इसमें समझना क्या है भला......यहाँ हमें कॉग्रेसी पसन्द है इसलिऐ उसका प्रचार कर रहे हैं वहाँ भाजपा का प्रत्याशि पसन्द है इसलिऐ वहाँ उसका प्रचार कर रहें हैं हमारी इच्छा जिसका प्रचार करें ....। -लेकिन भैय्या जी कोई सिद्धान्त, कोई विचार धारा तो होनी चाहिऐ । किसी एक का समर्थन करो...किसी एक के प्रति वफादारी होनी चाहिऐ.....।
-कैसे सिद्धान्त कैसी विचारधारा.......आप क्या समझते हैं जो आज जिस झण्डे के नीचे खडा होकर चुनाव लड रहा है कल आपको उसी झण्डे के नीचे मिलेगा.........?
-क्यों नहीं मिलेगा भला....किसी विचार धारा और एजेण्डे को लेकर ही तो ये चुनाव लड रहे हैं तो भला कल चुनाव जीतने के बाद भी तो वादा निभायेगें ही.........?
- आप भी कैसी बातें करते हैं ये हाथी के दांत खाने के ओर दिखाने के ओर होते हैं ।हम किसी पार्टी वार्टी से बन्ध कर नहीं रहते जो जीती वही है हमारी पार्टी .......।अब आप हमारे नेताजी को ही देख लीजिऐ.....चुनाव लड रहे हैं निर्दलीय...दौसा से......अपनी श्रीमती जी को बनवा रखा है राजस्थान सरकार में मन्त्री और प्रचार कर रहे हैं भीलवाडा में कॉग्रेस प्रदेश अध्यक्ष का, तो कोटा में आर.एस.एस के श्याम शर्मा का जो कि भाजपा से चुना लड रहे हैं और साथ ही जालौर से नि्र्दलीय सरदार बूटासिंह का....जब वे अलग अलग दिन अलग -अलग सुर में प्रचार कर सकते हैं तो भला हमारा क्या......। अब देखा जाये तो भैय्या जी की बात में दम तो है।कभी ये नेता जी जनता के बीच गला फाड कर कहते हैं किभाजपा सरकार भ्रष्ट है और दूसरे ही पल दलील देने लगते है कि कॉग्रेसी धोकेबाज हैं। अपने आप को बडे नेता कहलाने वालों को ही अभी तक समझ नहीं आ रहा है कि उन्हें करना क्या है तो जनता को भला वे क्या राह दिखाऐगें।कभी तो इन्हें कॉग्रेस में देश का उज्जवल भविष्य नजर आता है तो कभी वापस मन भटक कर भाजपा की नैय्या में बैठने को लालायित होता है....तो कभी पार्टी विहीन राजनीति की ओर भागना शुरू कर देते हैं। कभी जनजाति विशेष के नेता बन करकर समाज के सामने आते हैं तो कभी आम जन के नेता बनने का नाटक रचाते हैं । एक साथ कई नावों पर सवार ये लोग शायद सोचते हैं कि जनता तो अपनी ही है, सीधी साधी जिसे जैसे चाहो उल्लू बना लो....। क्योकि उनका तो एक ही लक्ष्य है कि कैसे भी कुर्सी अपने कब्जे में आनी चाहिऐ.....भले ही कैसे भी जतन से आये ...किसी के भी कन्धे पर चढ़कर मिले या किसी को भी रास्ते में ही धक्का दे कर मिले ........जनता का क्या है उसके सामने अब वापस पाँच साल बाद ही तो आना है......!
( दैनिक जन जागृति पक्ष में मेरे कालम से .05-05-09)
रंगत चुनाव की
(दैनिक जन जागृति पक्ष में मेरे कालम से दि.04/05/06)
आई.पी.एल.पर आई.पी एल भारी
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चुनावी सरगर्मियों का जायजा लेनेके लिऐ हमने भैय्या जी से पूछा-क्यों भैय्या जी कैसा चल रहा है चुनाव प्रचार....?हमारा यह पूछना था कि मायूस होकर बोले-क्या खाक चुनाव प्रचार....दिन में तो चिलचिलाती धूप पीछा नहीं छोडती और शाम के बाद सोचते हैं कि थोडा ठंडक में कुछ प्रचार किया जाऐ तो ससुरा ये टी.वी. लोगों का पीछा नहीं छोडता है...। _हम सोच में पड गये कि टी.वी. और चुनाव प्रचार का भला क्या लेना देना।हमने कहा--टी.वी. पर चानाव के लिऐ कोई विशेष धारावाहिक आ रहा है क्या.....? --अजी धारावाहिक को मारो गोली....आजकल तो सभी सीरियल की भी ऐसी -तैसी हो रही है इस क्रिकेट के भूत के कारण....? --क्रिकेट का भूत और टी वी पर क्या कह रहे हो भैय्या जी....? --आप भी भला क्यों समझकर भी अनजान बन रहे हैं। आपको मालूम है कि आजकल डबल-डबल आई.पी. एल.मैच चल रहे हैं.....। --आप क्या कहना चाह रहे हैं मुझे तो भैय्या जी कुछ समझ में नहीं आ रहा है ....? --आपको मालूम है कि एक आई.पी. एल, मैच क्रिकेट का चल रहा है अफ्रीका में जो कि पहले भारत में ही होने वाला था लेकिन यहाँ पर नेता जी को दूसरा आई. पी. एल. मैच जो करवाना था इसलिऐ क्रिकेट मैच जा पहुँचा अफ्रीका और नेता जी का आई.पी एल यानी-इण्डियन प्राइमिनिस्टर लीग मैच हो रहा है भारत में ......। देश के लोकतन्त्र के लिऐ ये मैच भी जरुरी हैं लेकिन हमारे देश की जनता है कि नेताओं को लिफ्ट ही नहीं दे रही है ।तभी तो यहाँ होने वाले राजनीतिक मैच फ्लाप हो रहे हैं लोग घरों से ही नहीं निकल रहे हैं। -- भैय्या जी आप ये क्या कह रहे हैं भला....क्या लोगों के लिऐ आजकल चुनाव से भी ज्यादा जरूरी क्रिकेट का मैच हो गया है.......। --आप किसी से भी पूछ लो कि आज कौन-कौन सी टीम का मैच होगा तो बच्चा-बच्चा भी बता देगा,लेकिन चुनाव के बारे में पूछो कि आपके यहाँ से कौन-कौन चुनाव लड रहा है तो दो नाम बताकर ही टांय-टांय फिस्स हो जाऐगा....! वास्तव में देखा जाऐ तो भैय्या जी की बात भी सही है ।शाम हुई नहीं कि सभी चिपक जाते हैं अपने-अपने घरों में टी.वी. के सामने...।अपने शहर में कितने उम्मीदवार चुनाव लड रहे हैं शायद ही किसी को मालूम हो। किसी से वोट की बात भी करो तो सीधा जबाब देता है कि हमें क्या.... कोई भी जीते और कोई भी हारे हमारी बला से......?अब देश के ऐसे पढ़े लिखे नासमझों को भला कॊई कैसे समझाऐ कि इन चुना्वों से आपको ही तो सबसे ज्यादा लेना देना है...आपको ही तो ध्यान रखना है कि हमारे देश का नेतृत्व अच्छे लोगों के हाथों में रहे ताकि हम विश्व में सम्मान से सिर उठा कर जी सकें और हमारा देश निरन्तर आगे बढ़ता जाऐ......।
रंगत चुनाव की
(जन जागृति पक्ष में मेरे कॉलम से दि.03/05/09)
जनता सब जानती है
चुनावी गर्माहट के साथ ही राजस्थान में मुख्य मन्त्री गहलोत और पूर्व मुख्य मन्त्री वसुन्धरा का वाकयुद्ध भी तेज होता जा रहा है।गहलोत जहाँ वसुन्धरा राज में हुऐ भ्रष्टाचार को कोस रहे हैं वहीं पर वसुन्धरा गहलोत के वित्तीय कुप्रबन्धन का राग अलाप रही हैं।दोनों ही एक दूसरे पर राजस्थान सरकार के काम काज को लेकर टांग खिचाई कर रहे हैं।दोनों की ही भाषा से लगता है कि इन्हें अभी तक भी इस बात का अहसास नहीं हो पाया है कि विधान सभा के चुनाव तो कभी के समाप्त हो गये अब लोकसभा के चुनाव आ गये हैं। खींचा तानी ही करनी है तो कोई राष्ट्रीय मुद्दालो और उस पर बहस करो....?सरकार दिल्ली की बननी है बातें राजस्थान सरकार की हो रही हैं। चुनाव का मात्र एक सप्ताह ही रह गया है अब तो कम से कम मुद्दे की बात पर आजाओ........? जयपुर से दिल्ली की राह की योजनाओं से जनता को अवगत कराओ।जनता को अपना घोषणा पत्र बताओ........!आपसी खीचतान में जनता को उल्लू क्यों बनाते हो भाई....जनता सब समझती है......लेकिन यह बात इन नेताओं को कौन समझाये कि ये गहलोत या वसुन्धरा की सरकार के चुनाव नहीं है लोकसभा के चुनाव है...........! ______________________________________________________________________________________________________________
कुछ तो धीर धरो लालू
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मौसम कैसा भी गरम क्यों न हो जाऐ लेकिन राजनीति में नेता जी का तापमान यदि बढ़ने लगता है तो यह उनकी सेहत के साथ ही राजनीति केलिऐ भी अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता ।लेकिन अपने रेल मन्त्रीजी हैं कि मौसम के साथ-साथ उनके दिमाग का पारा भी सातवें आसमान पर पहुँचने कग गया है । तभी तो सरे आम अपने सुरक्षा गार्ड को ही लताड दिया।एक तो चु्नाव का माहौल उसपर रोजाना बनते बिगडते राजनीतिक समीकरण.....हो सकता है कि चुनावी नतीजों की आहट आपके पक्ष में नहीं आ रही हो लेकिन इसका मतलब यह तो कदापि नहीं कि आप सरेआम किसी पर भी पिल जाऐं और कहीं भी किसी पर भी अपनी भडास निकालने लग जाऐं.....? जनता सब देख रही है सुन रही है.....यह जनता का दरबार है बन्धु ..आपकी लगाम फिलहाल तो जनता के ही हाथों में है....। ऊँट किस करवट बैठाना है यह तो जनता को ही तय करना है...इसलिऐ थोडा तो धैर्य धरियेगा वरना जनता तो जनता ही है. कि उसे क्या करना है। वो अभी तो सब कुछ कर सकती है,इसलिये संभलिऐगा कहीं ऐसा न हो कि बाद में यही कहना पडे कि अब पछताने से क्य फायदा जब चिडिया चुग गई खेत......?
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