जनजागृती पक्ष दैनिक समाचार-पत्र के स्थाई स्तम्भ में प्रकाशित व्यंग्य लेख

Thursday 2 April 2009

तलाश उम्मीदवार की

तलाश उम्मीदवार की चुनाव तो चुनाव हैं चाहे पंचायत समिती के हों ,नगर पालिका, निगम या फिर विधान सभा अथवा लोकसभा के ही क्यों न हों ।चुनाव की घोषणा हुई नहीं कि घण्टाघर की तंग गलियों से लेकर जुम्मन चाचा और र्भैय्या जी की जुबान पर चुनाव को लेकर कभी भी वाक युध्द छिड़ जाता है।कमल वालों ने तो अपने उम्मीदवार को जनता के आगे लाकर खड़ा कर दिया लेकिन हाथ वालों के हाथ अभी खाली ही हैं । बस इसी बात को लेकर जुम्मन चाचा और भैय्या जी उलझे हैं। भैय्या जी बड़ी सोच में है बोले-जुम्मन चाचा, कॉग्रेस पार्टी का उम्मीदवार कहाँ गायब हो गया जो अभी तक मिल ही नहीं रहा है। आखिर माजरा क्या है ? जुम्मन चाचा तपाक से बोले यह बात तुम मुझसे क्यों पूछ रहे हो...--? मैं कोई पार्टी का नेता हूँ --?भैय्या जी तुरन्त बोले नहीं मैं तो यूँ ही जिक्र कर रहा था ।अब बॉरा-झालावाड़ में तो नये नेता भाया जी तुरन्त अपने घर का ही उम्मीदवार ले आये,फिर यहाँ भला कैसा अकाल पड़ा है जो इन्हें कोई मिल ही नहीं रहा । जुम्मन चाचा बोले-तुम्हें मालूम नहीं यहाँ नेताओं की कमी थोडा ही है यहाँ तो हर कोई लाइन में लगा है।सवाल यह है कि आखिर टिकट दें तो दें किसको.....?भैय्या जी ने बात बढाते हुऐ कहा - हमें तो लगता है यहाँ पार्टी की नाक के सवाल से ज्यादा अब गृहमंत्री जी की नाक का आ गया है। इसपर जुम्मन चच बोले-देखा जाऐ तो हमें भी कुछ ऐसा ही लग रहा है।एक तरफ जहाँ बॉरा-झालावाड़ क्षेत्र में नये मन्त्री जी अपने पैर मजबूत करने में लगे हैं वहीं हमारे गृहमन्त्री जी तो पहले से ही मजबूत है ,वे भला अपने क्षेत्र में किसी भी ऐसे व्यक्ति को टिकिट क्यॊं दिलाऐगें जिससे उनके नम को बट्टा लगे । कल को लोग भला क्या कहेगें ?जो आदमी पूरे प्रदेश की व्यवस्था सम्भालें हुऐ हैं लेकिन अपना शहर ही नहीं सम्भाल पा रहा है। हमारे विचार से अब सबसे बड़ा झमेल तो यह फंस गया कि हडोती के दो ऐसे मन्त्री जो आपस में गुरू चेले भी है।दोनों की ही शन का सवाल है।चेले जी के करण बरसों बाद कॉग्रेसियों को उम्मीद जगी है कि वे महारानी जी के लाड़ले का सामना भी कर सकेगॆं। वरना अभी तक तो केवल मजबूरी में ही किसी न किसी कॊ बळी का बकरा बनना पड़ता था महारानी जी के सामने। अब ये भी उम्मीदवार घोषित करें भी तो कैसे करें ,जहाँ एक तरफ किरोडी़ जी का रोडा़ बीच में आता है तो दूसरी तरफ गुंजल की गूँज कानों तक पहुँचती है।इन सब के बीच धरीवाल जी की धार का भी सवाल अटका हुआ है।क्योंकि कहीं एसा न हो जाऐ कि फाइनल परीक्षा में गुरूजी के नम्बर कम न आ जाऐं-----? वरना कल को लोग तो ये ही कहेंगे कि गुरू जी तो गुड़ रह गये और चेला-------???आपके साथ हम भी थोड़ा और कर लेते हैं इंतजर देखते है कि आखिर ऊँट किस करवट बैठता है --- ? (उपरोक्त लेख कोटा से प्रकाशित -जनजागृती पक्ष दैनिक समाचार पत्र १.०४.०९के अंक में मेरे स्थाई स्तम्भ में छपा है) डॉ. योगेन्द्र मणि

No comments:

Post a Comment