जनजागृती पक्ष दैनिक समाचार-पत्र के स्थाई स्तम्भ में प्रकाशित व्यंग्य लेख

Friday 8 May 2009

रंगत चुनाव की

(जन जागृति पक्ष में मेरे कॉलम से दि.03/05/09) जनता सब जानती है चुनावी गर्माहट के साथ ही राजस्थान में मुख्य मन्त्री गहलोत और पूर्व मुख्य मन्त्री वसुन्धरा का वाकयुद्ध भी तेज होता जा रहा है।गहलोत जहाँ वसुन्धरा राज में हुऐ भ्रष्टाचार को कोस रहे हैं वहीं पर वसुन्धरा गहलोत के वित्तीय कुप्रबन्धन का राग अलाप रही हैं।दोनों ही एक दूसरे पर राजस्थान सरकार के काम काज को लेकर टांग खिचाई कर रहे हैं।दोनों की ही भाषा से लगता है कि इन्हें अभी तक भी इस बात का अहसास नहीं हो पाया है कि विधान सभा के चुनाव तो कभी के समाप्त हो गये अब लोकसभा के चुनाव आ गये हैं। खींचा तानी ही करनी है तो कोई राष्ट्रीय मुद्दालो और उस पर बहस करो....?सरकार दिल्ली की बननी है बातें राजस्थान सरकार की हो रही हैं। चुनाव का मात्र एक सप्ताह ही रह गया है अब तो कम से कम मुद्दे की बात पर आजाओ........? जयपुर से दिल्ली की राह की योजनाओं से जनता को अवगत कराओ।जनता को अपना घोषणा पत्र बताओ........!आपसी खीचतान में जनता को उल्लू क्यों बनाते हो भाई....जनता सब समझती है......लेकिन यह बात इन नेताओं को कौन समझाये कि ये गहलोत या वसुन्धरा की सरकार के चुनाव नहीं है लोकसभा के चुनाव है...........! ______________________________________________________________________________________________________________ कुछ तो धीर धरो लालू ________________________________________________________________ मौसम कैसा भी गरम क्यों न हो जाऐ लेकिन राजनीति में नेता जी का तापमान यदि बढ़ने लगता है तो यह उनकी सेहत के साथ ही राजनीति केलिऐ भी अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता ।लेकिन अपने रेल मन्त्रीजी हैं कि मौसम के साथ-साथ उनके दिमाग का पारा भी सातवें आसमान पर पहुँचने कग गया है । तभी तो सरे आम अपने सुरक्षा गार्ड को ही लताड दिया।एक तो चु्नाव का माहौल उसपर रोजाना बनते बिगडते राजनीतिक समीकरण.....हो सकता है कि चुनावी नतीजों की आहट आपके पक्ष में नहीं आ रही हो लेकिन इसका मतलब यह तो कदापि नहीं कि आप सरेआम किसी पर भी पिल जाऐं और कहीं भी किसी पर भी अपनी भडास निकालने लग जाऐं.....? जनता सब देख रही है सुन रही है.....यह जनता का दरबार है बन्धु ..आपकी लगाम फिलहाल तो जनता के ही हाथों में है....। ऊँट किस करवट बैठाना है यह तो जनता को ही तय करना है...इसलिऐ थोडा तो धैर्य धरियेगा वरना जनता तो जनता ही है. कि उसे क्या करना है। वो अभी तो सब कुछ कर सकती है,इसलिये संभलिऐगा कहीं ऐसा न हो कि बाद में यही कहना पडे कि अब पछताने से क्य फायदा जब चिडिया चुग गई खेत......?

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