जनजागृती पक्ष दैनिक समाचार-पत्र के स्थाई स्तम्भ में प्रकाशित व्यंग्य लेख

Saturday, 4 April 2009

गोलमा का ओलमा

गोलम का ओलमा हमारे देश में नारी का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान रहा है। मेरे देश की नारियां अपने पति की आन- बान और शान के लिऐ बड़ी से बड़ी कुर्बानी से भी नहीं घबराती थी।तभी तो हमारे देश की नारियों को पतिव्रता नारी, देवी और न जाने किन किन सम्बोधनों से नवाजा जाता रहा है। वैसे पतिव्रता नारी आजकल इतिहास की वस्तु बनती जा रही है बड़ी मुश्किल से इस एतिहासिक घरोहर के दर्शन हो पाते हैं।लेकिन राजस्थानी घरती तो इस मामले में वैसे भी सबसे आगे है।यहाँ की महिलाऐं तो अपने पति के लिऐ सती तक होनें में भी नहीं घबराती हैं। सरकारी कानून लागू होने के बाद अब सती तो कोई होता नहीं है।लेकिन पतिव्रता होने पर कोई पाबन्दी नहीं है। आजकल तो राजनीति में पत्नीव्रत नेता भी पैदा हो गऐ हैं। जो कि पत्नी के लिऐ अपना सब कुछ न्यौछावर करने के लिऐ तत्पर रहते हैं। कोई अपनी पत्नी को एम.पी.बनवा रहा है तो कोई एम.एल.ए.,या मन्त्री तक बनवाने के लिऐ पूरे दाव पेचों का उपयोग आजकल नेता जी करते रहते हैं।अब पत्नी का भी तो कुछ नैतिक दयित्व होता ही है । तभी तो राजस्थान सरकर में नई-नई बनी महिला मन्त्री जी ने भी पति के लिऐ शहीद होने वालों में अपन नाम दर्ज करा ही दिया। आदरणीया गोलमा देवी ने गहलोत सरकार को ओलमा देते हुऐ मन्त्री पद को छोडने की पेशकश कर ड़ाली है। सुना है सोनिया जी को स्तीफा सौपा है। अब सबसे पहला प्रश्न मेरे दिमाग में कुलबुला रहा है कि उन्होंने स्तीफा लिखा कैसे होगा ,क्योंकि वे ही एक मात्र ऐसी मन्त्री हैं जिनके लिऐ काला अक्षर भैस बराबर है।साफ है स्तीफा लिखा भी उनके पति परमेश्वर माननीय किरोड़ी जी ने होगा और भेजा भी उन्होंने ही होगा । गोलमा मैय्या जी बन गई पतिव्रता पत्नी.....।इसपर तुर्रा ये कि मैं अपने पति का अपमान नहीं सह सकती। है न बड़ी अजीब सी बात ....? राजनीति में भला किसका अपमान और कैसा अपमान.........? आज जो कमल का बोझा ढ़ो रहा है कल का कोई पता नहीं कि वह किस झण्डे के नीचे खड़ा मिले। कुछ लोग झण्डे के लिऐ जान तक देने की कसमें सरेआम खाते है और वे ही रातों रात न जाने किस वाशिंग मशीन में ब्रेन वाश कराकर आते है कि रात को उन्होंने क्या कहा सब भूल जाते हैं।नई सुबह नये वादे, नई पार्टी ,सब कुछ नया -नया सा , शायद उन्हें भी अच्छा लगता है और जनता तो भोली है ही वह तो यह तक भी भूल जाती है कि कौन नेता जी कब आये और चले गये ।नेता जी के अतीत और वर्तमान से उसे कोई सरोकार ही नहीं है।ठीक भी है जब किसी नेता को ही अपना अतीत को याद रखने का समय नहीं है तो भला जनता को क्या पडी है...? नेताजी हैं कि अपनी पत्नी,बच्चे और पारिवारिक लोगों के भविष्य की चिन्ता में ही जीवन निकल देते हैं। जनता की सुध लेने का समय तो मात्र चुनाव के समय कूछ दिनों का ही मिल पाता है।ऐसे में गोलमा जी का ओलमा हमें तो वाजिब ही लगा वह एक अलग बात है कि भले ही वे कॉग्रेस की सदस्य नहीं हैं फिर भी स्तीफा कॉग्रेस पार्टी की अध्यक्ष् को भेजा है जिससे तो लगता है जैसे मूक भाषा मे कह रही हॊं कि हे सोनिया जी भले ही हम पार्टी के नहीं है फिर भी पार्टी के ही तो हैं आज नहीं तो कल तुम्हारी ही शरण में आना है फिलहाल दलबदल कानून से तो बचाऐ रखो वरना मुफ्त में ही पार्टी की सदस्यता लेते ही विधान सभा की सदस्यता से ही हाथ धोना पडेगा...कुछ तो रहम करो सोनिया जी हमारे पति रूपी परमेश्वर पर.........! ! डॉ योगेन्द्र मणि

1 comment:

  1. andaaj aur lekhanee dono hee behad prabhaavit karne waalee hai, swaagat hai aapkaa, yun hee likhte rahein.

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