जनजागृती पक्ष दैनिक समाचार-पत्र के स्थाई स्तम्भ में प्रकाशित व्यंग्य लेख

Sunday 5 April 2009

चूहों पर पहरे की तैयारी

चूहों पर पहरे की तैयारी भैय्या जी आज बडे बेचैन से दिख रहे थे सो हमने उनसे पूछ ही लिया क्या बात है भैय्या जी आज कुछ उदास से लग रहे हो। भैय्या जी ने लम्बी सांस ली और बोले - किसी को चूह काटता है तो दर्द भी होता होगा । हम बोले - भला इसमें कौन सी नई बात है अब चूहा काटे या कुत्ता ,दर्द तो होगा ही ।लेकिन आज तुम्हें भला चूहा कैसे याद आ गया ...।क्या राम नवमी पर गणपती जी ने दर्शन देकर तुम्हें आदेश दे दिया है कि जा बेट चूहों की सेवा करो नहीं तो चूहा तुम्हें काट लेगा....? भैय्या जी बोले - नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है। मैं तो सोच रहा था कि यदि मैं अचानक कहीं रास्ते चलते मर जाऊँ तो मेरी गिनती लावारिस के रूप नहीं होनी चाहिऐ नहीं तो मुझे भी महाराव भीम सिंह अस्पताल के मुर्दाघर में पहँचा दिया जाऐगा । हम चकराऐ-भैय्या जी आज आपको भला लावारिस केई तरह मरने का खयाल अचनक कैसे आया भला....? और उसपर भी चूहा बीच में कहाँ से आगया........? भय्या जी बोले -तुम्हें नहीं मालूम क्या ,अखबार में लिखा है की महाराव भीम सिंह अस्पताल में बडे-बडे चूहों का आतंक फैला है.....।हमने कहा चूहें भला कहाँ नहीं हैं आजकल,अब वे भी यदि बेचारे अस्पताल में पहुँच गये तो कौनसा पहाड़ टूट गया जो तुम इतनी बात को लम्बा कर रहे हो। वे बोले -सवाल चूहों का नहीं है । वहाँ के चूहे मुर्दाघर के मुदों को चट कर जाते है। हमारा चौकना स्वाभाविक था बोले- अब चूहे तो चूहें है कुछ तो खाऐगे ही ।तुम्हें मालूम है कई सरकारी दफ्तरों में तो चूहों को फाइलों का आहार मिल जाता है। कुछ दफ्तरॊं में गाय माता का आहार बन जाती है फाइलें ।अब हो सकता है कि चूहा महाराज को आहार के रूप में कुछ मिल नहीं रहा होगा ,। बेचारा कुछ तो खाइगा ही....? भैय्याजी बोले - इसीलिऐ तो मैं सोचता हूँ कि अपनी अंतिम इच्छा रजिस्टर्ड करवाकर हमेशा अपनी जेब में अपनेसाथ ही रखूं ताकि भगवान न करे कभी अकेले में अपनी बेटरी बन्द हो जाये तो कम से कम कोई मुझे इस विशाल काय अस्पताल में न ले जाये नहीं तो मेरे शरीर का भी ये चूहे कुतर-कुतर कर हुलिया ही बदल देगें। हम उन्हें यह कैसे समझा सकते थे कि मरने के बाद की चिन्ता भला अभी से ही वे क्यों कर रहे हैं। यूं भी मरने के बाद किसे पता रहेगा कि हमारे शरीर का किसी ने क्या किया। मगर नहीं साहब उन्हें तो अपने मुर्दे की चिन्ता जिन्दा शरीर से भी ज्यादा सता रही थी। बोले-यदि ऊपर वाले के दरबार में मेरा आधा अधूरा शरीर पहूँचेगा तो वह भला कैसे पहिचानेगा कि मैं हि वो हूँ जिसका फरमान उसने भेजा था। ओर गलती से वापस उसने मेरे अधूरे शरीर की पूर्ती के लिऐ किसी और के शरीर को वहाँ बुला लिया तो.......?व्यर्थ में ही मरे साथ किसी ओर के परिवार का भी नुकसान हो जाऐगा। उनकी चिन्ता भी वाजिब थी।ऊपर वाले के यहाँ बिना नाक कान या बिना आँख के कोई पहुँचेगा तो वास्तव में किसीको भी अच्छा नहीं लगेगा। लेकिन कोई भला कर भी क्या सकता है।सरकार ने तो जाँच के आदेश दे दिऐ हैं। जो भी होगा देखा जाऐगा फिलहाल तो चूहों का आनन्द ही आनन्द है। (जन जागृति पक्ष में ०५/०४/०९ को प्रकाशित डॉ।योगेन्द्र मणि

2 comments:

  1. आप को यहाँ देख कर प्रसन्नता हुई! पर टेक्स्ट फोन्ट बड़ा करें।

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  2. शब्द पुष्टिकरण भी हटाएँ।

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