जनजागृती पक्ष दैनिक समाचार-पत्र के स्थाई स्तम्भ में प्रकाशित व्यंग्य लेख

Sunday, 19 April 2009

रंगत चुनाव की

दैनिक जन जागृति पक्ष में मेरे कॉलम से दि. 18/04/09 रंगत चुनाव की _____________________________ बैसला का फैंसला _____________________________________ राजस्थान के गुर्जरों को आरक्षण की आग में धकेलने वाले आज स्वयंभजपा के नेता बन बैठे है।जिस भाजपा सरकार के राज में दर्जनों गुर्जर गोलियों से भून दिये गये और कर्नल बैसला के नेतृत्व में हजारों लोग,गुर्जरों की लाशों की नुमाइश लगाये बैठे रहे ,सूखी रोटियां खा-कर पानी पी पी कर बैसला जी जिन्हें कोसते रहे।अब वे उसी कमल की ठंडी छांव में लोकसभा का चुनाव लड़ेगें। क्योंकि भाजपा ने कर्नल बैसला कोसवाईमाघोपुर-टोंक से टिकिट दिया है।लगता है बैसला साहब जुर्जर आन्दोलन में मरे दर्जनों शवों की गन्ध लोकसभा की हसीन कुर्सी के आगे भुला चुके हैं।तभी तो कल जिनसे गुर्जरों के खून का हिसाब मांगा जा रहा था आज उन्हीं के कन्धे से कन्धा मिलाकर साथ खडे होने में ये गौरवान्वित हो रहे हैं।उनकी नेतागिरी का राज लोगों को अब समझ में आया कि वे बार-बार महारानी जी के दरबार में समझोते की जाजम बिछाने के लिऐ क्यों जाते थे। धन्य कुर्सी मैय्या....बाप बड़ा न मैय्या सबसे बड़ी कुर्सी मैय्या....? _____________________________________________________________________________________________________________ मामा कंस ______________________________________________________________________________________________________________ डॉ.किरोड़ी लाल आखिर न न करते हुऐ निर्दलीय ही चुनावी समर में उतर ही गाऐ।कॉग्रेस ने उन्हें अपना हाथ नहीं थामाया तो अब बेचारे करते भी क्या.....?वे तो न घर के रहे न घाट के ..। उन्होंने सोचा था कि कॉग्रेस की दशा ऐसी हो जाऐ कि वे उनपर निर्भर रहें लेकिन हो गया उल्टा ही.....।कल जॊ उनके साथ थे आज वे गहलोत का हाथ थामें हैं आखिर कुर्सी का सवाल है....?अब भला मामा परसादी लाल भी भला क्यों पीछे रहते ,उन्होंने भी डॉ. साहब का साथ छोड़ दिया तो डॉ. साहब ने उन्हें मामा कंस की उपाधी से जा नवाजा है।क्योंकि राजस्थान सरकार में मन्त्री परसादी लाल मीण डॉ. किरोडी के मामा भी हैं। अब मामा ,भानजे की हिफाजत नहीं कर पाऐगा तो कंस मामा ही तो कहलाऐगा......। हो सकता है उनकी बात भी सही हो क्यॊंकिकंस मामा ने भी तो अपनी कुर्सी की सुरक्षा के लिऐ ही सारे हथकंडे अपनाऐ थे और ये भी अपनी कुर्सी कि सुरक्षा के लिऐ ही सब कुछ कर रहे हैं।कुर्सी सुरक्षा में भला बुराई भी क्या है....?कहने वाले अब कंस कहें या कुछ और भला क्या फर्क पडता है......। ______________________________________________________________________________________________________________ करोंड़ों के जन सेवक _______________________________________________________________ अजब है पर सच है कि आम आदमी का पूरा जीवन ही होम हो जाता है तब भी करोड़ क्या लाख रुपये कैसे होते हैं बस कल्पना ही करता रह्ता है ।कभी बीबी की फटी साडी की चिन्ता तो कभी बच्चों के स्कूल की फीस की....!लेकिन हमारे जनसेवकों को पास न जाने कौनसा जादू आता है कि पाँच साल में ही उनकी सम्पत्ती चोगुनी और दस गुनी तक हो जाती है। जबकि उनके वेतन का हिसाब लगाया जाऐ तो कहीं से भी गणित ठीक नहीं बैठता।ओर तो ओर करोडों की सम्पत्ती जमा करके भी किसी के पास घर नहीं तो किसी के पास वाहन नहीं है बेचारे न जाने कैसे गुजर करते है। प्यारी जनता के प्यार में उन्हें खुद के छप्पर तक की चिन्ता नहीं है।क्या ही अच्छा हो यदि ये लोग आम जनता को भी धन को पंख लगाने का कोई फार्मूला बता दें तो मेरे देश का हर गरीब लखपति और करोडपति हो जाऐ.और मिनटों में ही विदेशी कर्ज तक उतर जाये......?

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