जनजागृती पक्ष दैनिक समाचार-पत्र के स्थाई स्तम्भ में प्रकाशित व्यंग्य लेख
Monday, 20 April 2009
राजा भी प्रजा के दरबार में _____________________________________________________________________________________________________________हमारे देश में लोकतन्त्र की नैया पारलगाने के लिऐ चुनावी मौसम का आगमन हो चुका है । जैसे -जैसे चुनाव में खडे होने वाले उम्मीदवारो का लेखा जोखा सामने आ रहा है वैसे-वैसे हमारी आँखें भी चुंधियाने लगी हैं।हर कोई जन सेवक करोडों का मालिक है और सभी को गरीबों की चिन्ता है।जनता की सेवा के लिऐ हर खास-ओ- आम से लेकर राजघराने तक के लोग लाइन में लगें हैं।जिनके दर्शनों के लिऐ लोग तरसते थे वे आज जनता के सामने याचक बन कर कर खडे हैं।यह एक अलग बात है कि चुनाव जीतनें के बाद ये ही जनसेवक ईद के चाँद की तरह बडी मुशकिल से नजर आते हैं । मगर फिर भी आज जब भी कोई राजघराने का व्यक्ति स्वयं चलकर प्रजा के सामने खडा होता है तो प्रजा तो वैसे ही धन्य हो जाती है ।अब यह अलग बात है कि प्रजा की यह आत्मीयता वोट में कहाँ तक तब्दील हो पाती है। क्योंकि यह जनता है भैय्या सब जानती है, तभी तो में लोकतन्त्र जिन्दा है.....। ______________________________________________________________________________________________________________मैं इधर जाऊँ या उधर जाऊँ _______________________________________________________________________________________________________________
मीणा समाज के हमदर्द बनने के लिऐ जी जान से जुटे कुछ लोग अभी भी फैसला नहीं ले पा रहे हैं है कि उन्हें करना क्या है......?एक तरफ सत्ताधरी पार्टी को समर्थन दिया जा रहा है तो दूसरी ओर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उसीके खिलाफ चुनाव के मैदान में ताल ठोक कर खडे हैं ।साथ ही सत्तधारी दल के अध्यक्ष के लिऐ चुनाव प्रचार का एलान भी कर रहें हैं । उनका कहना है कि सी. पी जोशी तो अच्छे इंसान हैं तो भला बुरा आदमी इस राजनीति में कौन मिलेगा सभी एक से एक आला दर्जे के भलमानुस ही तो आते हैं राजनीति मैं। हाँ यह अलग बात है कि लोगों का आंकलन करते समय हमारा नजरिया जरुर समय समय पर ,अपनी सुविधा के अनुसार बदलता रहता है।तभी तो किरोडी जी दोनों हाथ में लड्डू रखने के चक्कर में कभी उनकी प्रशंसा करते हैं तो कभी कोसना शुरू कर देते हैं।शायद अकेले में वे गुनगुनाते होंगे कि मैं इधर जाऊं या उधर जाऊं बडी मुशकिल पडी है किधर जाऊं............?क्योंकि भले ही उन्होंने निर्दलीय पर्चा भर दिया हो लेकिन गहलोत साहब ने भी अभी आस नहीं छोडी है तभी तो अभी तक दरवाजे खुले हैं आखिर किरोडी जी एक अच्छे आदमी हैं........। _______________________________________________________________________________________________________________प्यार की झप्पीऔर पप्पी __________________________________________________________________________________________________________मुन्नाभाई यानि संजय दत्त साहब चुनावी भाषण में प्यार की झप्पी के साथ बहिन जी के लिऐ प्यार की पप्पी देने का ऐलान क्या किया कि प्रता्पगढ के डीएम का नोटिस जारी हो गया कि चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन हुआ है आप न तो प्यार की झप्पी देगें और न ही पप्पी.....? मुन्ना भाई सोचते होगें कि भला यह कैसा संहिता का चक्कर है तैश में कुछ बोलो तो भडकाऊ भाषण का डर प्यार से बोलो तो भी डर आखिर वे बेचारे करें भी तो क्या करें इससे अच्छे तो वे फिल्मों में ही थे ।वहां जब जिसे चाहा झप्पी दो जब मन चाहा पप्पी दो .... कोई झन्झट ही नहीं है किसी भी तरह का.............?अब इस झप्पी-पप्पी का जबाब किस भाषा में देना है इसके लिऐ किसी भले आदमी से ही सलाह लेनी होगी क्योंकि अभी तो पहले के केस ही नहीं सुलझ रहे है और राह चलतेअम्र सिंह के चक्कर में अब एक केस ओर गले पड जाऐगा.....?
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