जनजागृती पक्ष दैनिक समाचार-पत्र के स्थाई स्तम्भ में प्रकाशित व्यंग्य लेख

Friday, 24 April 2009

चुनावी हलचल

वसुन्धरा का झालावाड में डेरा राजस्थान विधान सभा में काग्रेस पार्टी की सरकार बनने के बाद काग्रेस जनों में विशेष उत्साह दिखाई दे रहा है। और राजस्थान के मुख्यमन्त्री अशो्क गहलोत लोक सभा चुनाव में टारगेट 25 लेकर चल रहें है । यहाँ से लोकसभा की पच्चीस सीटे हैं। दूसरी ओर भाजपा की पूर्व मुख्य मन्त्री वसुन्धरा राजे और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष माथुर पिछली बार लोकसभा की कुल 21 सीटों को बरकरार रखने पर ध्यान दे रहे हैं। मगर इस बार स्थिति बसुन्धरा राजे के लिऐ थोडा विकट बनी हुई है।वे चुनाव प्रचार में अपने पुत्र की सीट झालावाड -बॉरा पर ही अटकी हुई हैं उन्हें प्रदेश के अन्य क्षेत्र देखने का समय ही नहीं मिल पा रहा है। जब से काग्रेस की तरफ से उर्मिला जैन को उम्मीदवार घोषित किय गया है तभी से वसुन्धरा की नींद हराम हो गई है हाँलाकि उर्मिला नई उम्मीदवार है और पहली बार ही चुनाव लड रही है। लेकिन उनके पक्ष में सबसे मुख्य बात यह है कि झालवाड उनका ननिहल है और बॉरा उनका ससुराल है। साथ ही साथ बारा के ही प्रमोद जैन जो कि राजस्थान सरकार में सार्वजनिक निर्माण मन्त्री हैं ,उनके पति भी है,उनका बॉरा क्षेत्र में अच्छा प्रभाव है।गत विधान सभा में चारों सीटो पर, प्रमोद जैन के ही प्रयासों से काग्रेस ने कब्जा किया था। इसका प्रभाव लोकसभा में भी निश्चित ही पडेगा । इसी डर के कारण वसुन्धरा ने झालावाड-बॉरा में ही डेरा डाल रखा है।प्रमोद जैन की साफ-सुथरी छवि का फयदा कॉग्रेस को मिलेगा ही ऐसे अनुमान अभी से ही लगाऐ जा रहे हैं। झालावाड की सीट पिछले बीस वर्षो से पहले वसुन्धरा और अब उनके पुत्र दुष्यन्त सिंह के पास है। इस बार दुष्यन्त सिंह के् सामने मैदान में उर्मिला का आना पूर्व मुख्य मन्त्री को बैचेन करने का मुख्य कारण रहा है । इस सीट पर बेटे को विजय दिलाने के लिऐ एक माँ सब कुछ करने को तैयार है। पिछले दिनों विधनसभा चुनाव के समय या उसके पहले आपसी मन मुटाव के कारण जिन लोगॊं को भाजपा ने बाहर का रास्ता दिखा दिया था उन सभी को मनाने का सिलसिला जारी है। कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो कि बसुन्धरा राजे को फूटी आँख भी नहीं सुहाते थे क्योंकि गुर्जर आन्दोलन के समय उनके बीच की खाइयां इतनी बढ चुकी थी जिससे लगता था कि अब इनका नजदीक आना नामुनकिन है । लेकिन सभी बातों को भुलाकर वे इन नेताओं के घर जाकर स्वयं पार्टी में वापस ला रही हैं।ताकि जहाँ से भी थोडा बहुत सहारा मिल सके ले लिया जाऐ और किसी भी तरह बेटे को विजयी बनाना ही उनका अन्तिम लक्ष्य बनता जा रहा है। और इसमें राज्य पर घ्यान देना सम्भव नहीं हो पा रहा है। परिणाम क्या होगा यह तो समय ही बताऐगा लेकिन इतना तय है कि इस क्षेत्र से जीत या हार दोनों ही वसुन्धरा की व्यक्तिगत जीत हार ही होगी। क्योंकि उनके पुत्र दुष्यन्त सिंह का इस जीत या हार में कोई विशेष हाथ नहीं होगा । भाजपा को यहाँ से वोट केवल वसुन्धरा के नाम पर ही मिलेगें न कि दुष्यन्त सिंह के नाम पर ।गत पाँच वर्षों में यहाँ के लोग इन्हें केवल महारानी साहिबा के पुत्र के रूप में जानते हैं। डॉ. योगेन्द्र मणि

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