जनजागृती पक्ष दैनिक समाचार-पत्र के स्थाई स्तम्भ में प्रकाशित व्यंग्य लेख
Saturday, 2 May 2009
रंगत चुनाव की
विवाह सम्मेलनों में चुनावी खिचडी
एक तो मौसम की गर्मी,दूसरी ओर शादियों की भरमार और उसपर चुनावी मौसम है कि नेताजी को दौड लगाने को मजबूर किये जाता है । वे सभी को अपनी कहानी सुनाने को बेताब है । किसीकी शादी हो या अन्य कैसा भी जरूरी काम हो आजकल नेता जी को बस एक ही फितूर सवार है कि कैसे भी अधिक से अधिक लोगों से मुलाकात की जाऐ।सामूहिक विवाह सम्मेलन आजकल नेताजी बडा पसन्द आ रहा है । अब नेता जी भले ही किसी भी पार्टी के हों सा्मूहिक विवाह सम्मेलन में चुनावी खिचडी का तडका तो लग ही जाता है। सभी जाति और पार्टी के नेताजी सम्मेलन की खुशबू लगते ही वहाँ हाजरी लगाने की पूरी-पूरी कोशिश में रहते हैं।एक साथ अनेक लोगॊं से मुलाकात तो हो ही जाती है साथ ही चुनावी राम-राम भी हो जाती है ।वहाँ इनके वोटर कितने हैं भला इस बात से किसी को क्या लेना -देना......। नेता जी के साथ चलने वाले लश्कर को तो बस यह सन्तुष्टी हो जाती है कि आज इतने लोगों से मुलाकात हो गई । अब नतीजा क्या रहेगा ये तो राम ही जाने, हमारा तो काम है सो कर दिया.....वैसे भी ऐसी तपती दुपहरी में सम्मेलनों में मेल-जोल बढाने से अच्छा हो भी क्या सकता है।सम्मेलन वाले भी धन्य और नेताजी तो धन्य हो ही जाते हैं। _____________________________________________________________________________________________________________ जागो....अब तो जगो......! _______________________________________________________________________________________________________________ कल ही महा नगर के एक जागरुक दिखने वाले जीव से हमने पूछ-आपके यहाँ से कौन-कौन चुनाव में खडे हो रहे हैं ?वे बोले -पता नहीं.....। हमें आश्चर्य हुआ कि कैसा भरतीय नागरिक है और वह भी पढा लिखा पोस्ट ग्रेजुएट..?हमने फिर भी हिम्मत कर पूछा- किस -किस पार्टी के उम्मीदवार चुनाव लड रहे हैं - वो फिर बोले - पता नहीं......?हम परेशान कैसा प्राणी है। हमने फिर भी सावाल किया -आप रहते कहाँ हैं -वे सज्जन झल्लाकर बोले -आपको परेशानी क्या है, यहीं रहता हूँ। सरकारी कर्मचारी हूँ । बोलो क्या कर लोगे....? भला हम क्या कर सकते थे ?फिर भी हमने उन्हें समझाया कि आप भारतीय नागरिक हैं संविधान ने आपको मौका दिया है आपकी मन पसन्द सरकार चुनने का तो कम से कम तुम्हें यह तो मालूम होना ही चाहिये कि तुम्हारे क्षेत्र से कौन -कौन लोकसभा में जाना चाहता है और तुम भी अच्छी सरकार को चुनने में भगीदार बनों....?वे तपाक से बोले- भाई साहब सरकार किसी की भी बने मुझे उससे क्या लेनादेना। सरकार से मुझे वेतेन तो बराबर ही मिलेगा वोट दूं तब भी और वोट नहीं दूगा तब भी...?अब सोये हुऐ पढेलिखे लोगों को भला कौन कैसे समझाऐ कि सरकार का चुनाव करना हमारा कर्तव्य ही नहीं अधिकार भी है और हर जागरुक नागरिक को इस अधिकार का पूरा-पूरा उपयोग करना चाहिऐ....।नही तो गलत लोगों के चयन पर पाँच साल तक तुम्हें पछताना होगा। इसलिऐ जागो बन्धु जागो.......अब तो जाग ही जाओ......!
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